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कर्नाटक चुनाव के बाद मोदी को एक और झटका, अब दिल्ली के आर्कबिशप चर्चों ने… मरीजों के परिजनों को रखा दूरकोझिकोड मेडिकल कॉलेज अस्पताल के चिकित्सकों ने संक्रमित मरीज के परिवारवालों को अस्पताल आने पर रोक लगा दी है। क्योंकि निपाह वायरस का संक्रमण मरीज के संपर्क में आने से तेजी से फैलता है। कोझिकोड जिले मेें करीब 30 परिवार के घर छोड़ने की भी खबर है। वहीं करीब 150 लोग खुद गांव से बाहर चले गए हैं। निपाह वायरस से हुई मौतों के बाद अफरातफरी का माहौल है। हालांकि केरल की स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि डरने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि यह वायरस संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क में आने से फैलता है।वहीं तमिलनाडु सरकार ने सीमावर्ती जिलों सहित दूसरी जगहों पर बुखार के पीड़ितों की निगरानी बढ़ा दी और स्थिति पर करीबी नजर बनाई हुई है। प्रदेश के स्वास्थ्य सचिव जे राधाकृष्णन ने कहा कि घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है।उधर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए डॉक्टरों की एक टीम को तैयार करने का निर्देश दिया, जिसे केरल रवाना कर दिया गया। स्वास्थ कर्मचारी वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए चमगादड़ों को पकड़कर मारने में भी लगे हुए हैं।
क्या है निपाह वायरस?
निपाह वायरस ( NiV ) एक तरह की संक्रमित रोग है, जो कि एक जानवर से फलों और फिर व्यक्तियों में फैलता है। ये तेजी से उभरता वायरस है जो इंसानों और जानवरों में तेजी से फैलता है। इससे व्यक्ति की मौत हो सकती है। चिंता की वजह यह है कि निपाह के इलाज के लिए अब तक किसी सटीक इलाज की खोज नहीं हो सकी है।निपाह बुखार के इलाज के लिए न तो कोई दवाई है और न ही इससे बचाव के लिए कोई टीका ईजाद किया गया है। वक्त रहते सही इलाज और लगातार निगरानी से ही जान बच सकती है। 1998 में मलेशिया के कांपुंग सुंगई निपाह में पहली बार इसके मामले सामने आए थे। इसलिए इसे निपाह वायरस नाम दिया गया।
निपाह वायरस ( NiV ) एक तरह की संक्रमित रोग है, जो कि एक जानवर से फलों और फिर व्यक्तियों में फैलता है। ये तेजी से उभरता वायरस है जो इंसानों और जानवरों में तेजी से फैलता है। इससे व्यक्ति की मौत हो सकती है। चिंता की वजह यह है कि निपाह के इलाज के लिए अब तक किसी सटीक इलाज की खोज नहीं हो सकी है।निपाह बुखार के इलाज के लिए न तो कोई दवाई है और न ही इससे बचाव के लिए कोई टीका ईजाद किया गया है। वक्त रहते सही इलाज और लगातार निगरानी से ही जान बच सकती है। 1998 में मलेशिया के कांपुंग सुंगई निपाह में पहली बार इसके मामले सामने आए थे। इसलिए इसे निपाह वायरस नाम दिया गया।