सीबीआई से जांच कराने की मांग पुलिस की इस कार्रवाई के दो पक्ष देखने को मिल रहे हैं। एक ओर जहां इसकी सराहना हो रही है, वहीं दूसरी ओर इसकी आलोचना भी हो रही है। याचिकाकर्ता जीएस मणि ने एक प्राथमिकी दर्ज करने के साथ ही सीबीआई, एसआईटी, सीआईडी या किसी अन्य राज्य के पुलिस अधिकारियों की एक टीम की ओर से की गई मुठभेड़ की जांच करने के निर्देश देने की मांग की है।
सुनियोजित थी मुठभेड़ याचिका में शीर्ष अदालत से आग्रह किया गया कि एक स्वतंत्र जांच एजेंसी को फर्जी मुठभेड़ की जांच (पीयूसीएल बनाम महाराष्ट्र राज्य) के संबंध में निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार निर्देशित किया जाना चाहिए। याचिका में आरोप लगाया गया कि यह पुलिस की कथित चूक पर पर्दा डालने के लिए एक सुनियोजित मुठभेड़ थी।
जीवन को खतरे में डालने वाली गंभीर घटना एक अन्य याचिका में अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा ने कहा कि पुलिस हिरासत में चार गिरफ्तार लोगों की हत्या कथित तौर पर राजनेताओं की मांग पर की गई। शर्मा ने कहा कि मीडिया ने बिना किसी ट्रायल के अभियुक्तों को तत्काल फांसी देने की मांग करते हुए हंगामा किया, जो भारत के निर्दोष नागरिकों की हत्या की राह खोलता है। साथ ही यह संविधान के अनुच्छेद-21 का घोर उल्लंघन है। याचिका में शर्मा ने कहा, “यह संवैधानिक प्रणालियों और भारतीय नागरिक के जीवन व स्वतंत्रता को खतरे में डालने वाली एक गंभीर घटना है।”
आरोपियों के परिवारों के लिए मुआवजे की मांग शर्मा ने आरोपियों के परिवारों के लिए मुआवजे की मांग करते हुए कहा कि शीर्ष अदालत को न्याय के हित में पुलिस हिरासत में मारे गए प्रत्येक आरोपी के परिवार के सदस्यों को 20-20 लाख रुपए का मुआवजा देने के लिए एक निर्देश पारित करना चाहिए। शर्मा ने अपनी याचिका में कहा कि “अदालत की नियमित निगरानी में सीबीआई की मदद से जांच करने के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) की नियुक्ति हो, जिसमें सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश शामिल हों।”