जन्म के वक्त बच्ची इतनी कमज़ोर थी कि उसे घर लाने के लिए एक रूमाल में लपेट दिया गया था और बाइक की छोटी सी डिक्की में ही रखा गया था। बताया जाता है कि बच्ची के बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। इतनी कमज़ोर बच्ची को देखने के बाद उसके मां-बाप भी उसे अपनाने के लिए तैयार नहीं हो रहे थे। लेकिन उसके बाद जो भी हुआ वो किसी चमत्कार से कम नहीं था। मां-बाप के डर के बाद यूनिसेफ ने बच्ची की सारी ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली। यूनिसेफ का सबसे पहला उद्देश्य यही था कि कैसे भी करके इस बच्ची को बचा लिया जाए। जिसके बाद उसे यूनिसेफ की स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनीट में शिफ्ट किया गया।
जहां रिषिता नाम की उस बच्ची की किस्मत ही पलट गई। डॉक्टर्स ने बताया कि रिषिता ने करीब 5 दिन बाद रोना शुरु किया था। उससे पहले डॉक्टरों ने भी उम्मीद छोड़ दी थी। रिषिता का रोना डॉक्टरों की टीम के लिए खुशखबरी थी। जिसके बाद उसके इलाज में और सक्रियता दिखाई गई। लेकिन इतना कुछ होने के बाद भी उसमें कोई हलचल नहीं देखी जा रही थी। जिसके बाद उसे एक खास किस्म के वाटर बेड पर रखा गया था। शुक्र था अब उसमें हलचल होने लगी थी। अस्पताल से छुट्टी के वक्त रिषिता का वज़न अब 2 किलो 300 ग्राम हो चुका था। अब करीब दो साल के बाद रिषिता बिल्कुल सामान्य बच्चों की तरह अपने मम्मी-पापा के साथ जीवन के मज़े ले रही है।