बांध निर्माण के लिए आए मजदूरों ने बसाई थी बस्तियां रिपोर्ट्स के मुताबिक इस बांध का काम 1965 के आसपास शुरू होकर 1974 में पूरा हो गया था। इसके बाद बांध निर्माण के लिए देशभर से आए मजदूरों ने यहीं बस्तियां बसा लीं। इन्हीं कॉलोनियों में पीएचसी, गढ़वाल विकास निगम गैस एजेंसी, विद्युत निगम, डाकघर, उपकोषागार जैसे सरकारी दफ्तर भी शामिल हैं। दरअसल इन बस्तियों का एक बड़ा हिस्सा जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क से सटा हुआ है। कुछ सालों पहले पार्क के कोर जोन में वन्यजीवन पर पड़ने वाले खलल को देखते हुए कॉलोनी खाली कराने की मांग उठी थी।
21 सितंबर तक सौंपनी थी जमीन सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में अदालत ने कॉलोनी को खाली कराने के आदेश दिए। इसके साथ ही मामला एनजीटी को सौंप दिया गया। कोर्ट के आदेश के मुताबिक प्रशासन को यहां हुए सभी निर्माण को ध्वस्त करके 21 सितंबर तक जमीन वन विभाग को सौंपनी है और 24 सितंबर को एनजीटी में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करनी पड़ेगी। इसके चलते तेजी से कार्रवाई की जा रही है।
प्रशासन ने कहा नहीं होगा पुनर्वास स्थानीय लोगों का आरोप है कि पुनर्वास की व्यवस्था किए जाने के बिना ही उन्हें बेघर कर दिया गया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ‘प्रशासन ने कहा है कि इन कॉलोनियों में गैर कानूनी तरीके से घर बने हैं। ऐसे में उनके पुनर्वास का सवाल ही नहीं उठता।’ लोगों ने सवाल उठाया, ‘अगर वो गैरकानूनी तरीकों से रह रहे हैं तो उनके सरकारी पहचान पत्र कैसे बन गए? हमारे वोट से विधायक और सांसद कैसे बनते हैं? अगर हम वोट देते समय कानूनी थे तो आज एकदम से कैसे गैर कानूनी हो गए?’