अंग्रेजी उपनिवेशवादी से निकलना होगा : उपराष्ट्रपति
राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) द्वारा आयोजित दीक्षांत समारोह में नायडू ने कहा कि वह अंग्रेजी भाषा के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन भारत को अंग्रेजी उपनिवेशवादी शासन की मानसिकता से बाहर निकलने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि नमस्कार भारत में हमारा संस्कार है। यह सुबह, शाम और रात में भी उचित है। उपराष्ट्रपति ने याद करते हुए कहा कि कैसे हाल ही में अंग्रेजी को एक बीमारी कहने के बाद मीडिया के एक वर्ग ने उनके बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया था, जबकि वह मातृभाषा की रक्षा और प्रसार के बारे में बात कर रहे थे।
अंग्रेज चले गए लेकिन उनकी मानसिकता यहीं बनी है: नायडू
उपराष्ट्रपति ने कहा कि मैंने ऐसा नहीं कहा था। अंग्रेजी एक बीमारी नहीं है। अंग्रेजी का स्वागत है। आप इससे सीखते हैं, लेकिन अंग्रेजी दिमाग जो कि ब्रिटिश शासन द्वारा हमें परंपरागत रूप से मिला है, वह बीमारी है। अंग्रेज चले गए, उनकी मानसिकता यहीं बनी हुई है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि राज्यसभा के सभापति होने के नाते उन्होंने उन उपनिवेशवादी कार्यो को समाप्त कर दिया, जो पुराने हो चुके थे।
‘भारतमाता’ की तस्वीरें रखने वाला ही देशभक्त नहीं:नायडू
धर्म और भाषा को लेकर भी उपराष्ट्रपति ने बड़ी नसीहत दी है। उन्होंने कहा कि यदि कोई धर्म, क्षेत्र या भाषा के आधार पर भेदभाव करता है, तो केवल ‘भारतमाता’ की तस्वीरें लेकर वह देशभक्त नहीं बन सकता है। देशभक्ति का मतलब केवल यह नहीं है कि भारतमाता की केवल तस्वीर ले लें और दूसरों व जरूरतमंदों के साथ दुर्व्यवहार करें। आपको हर किसी के साथ प्यार-स्नेह के साथ व्यवहार करना होगा, तभी आप देशभक्त कहलाएंगे। नायडू ने कहा कि यह भारत की विशेषता है। अलग-अलग जाति, संप्रदाय, लिंग, धर्म और क्षेत्र के बावजूद भारत एक है। एक राष्ट्र, एक लोग, एक देश.. यह सोच आप सभी की होना चाहिए। यही देशभक्ति है। नायडू ने संस्थान द्वारा परंपरागत काले दीक्षांत गाउन पहनना अनिवार्य नहीं करने की भी सराहना की।