जीरो डे उन दिनों को कहा जाता है जब शहरों में जलसंकट की वजह से पानी की आपूर्ति बंद कर दी जाती है। लोगों को राशन की तर्ज पर एक निश्चित मात्रा में ही पानी का इस्तेमाल करने की इजाजत होती है।
शिमला में इस बार पेयजल संकट इतना गंभीर है कि हिमाचल प्रदेश की राजधानी में पर्यटकों ने आना कम कर दिया है। साथ ही पानी की कमी से होटल और रेस्टोरेंट बंद पड़े हैं। आज भी लोगों ने नेशनल हाईवे पर जाम लगा रखा है।
दिल्ली में यमुना के 50 फीसदी से ज्यादा क्षेत्र में अतिक्रमण हो चुका है। 87 फीसदी दिल्ली में अतिदोहन के कारण भूजलस्तर लगातार गिर चुका है। यही वजह है कि दिल्ली पानी की किल्लत से पार पाने के लिए हरियाणा पर निर्भर है। लेकिन भीषण गर्मी की वजह से दिल्ली के लोगों को इस बार गंभीर पेयजल संकट का सामना करना पड़ रहा है। दिल्ली में रहने वाले मध्यम वर्ग के लोग रोजाना पानी खरीद कर पी रहे हैं। इतना ही नहीं सरकारी टैंकरों से लोगों को ब्लैक में पानी बेचे जा रहे हैं। केजरीवाल सरकार लोगों को समुचित मात्रा में पानी मुहैया नहीं करवा पा रही है।
मुंबई सहित महाराष्ट्र के सोलापुर और विदर्भ जैसे क्षेत्रों में हर साल लोगों को भीषण पेयजल संकट का सामना करना पड़ता है। 2017 में सूखे की वजह से महाराष्ट्र के लातूर में प्रदेश सरकार को ट्रेन से पानी पहुंचानी पड़ी थी। 2016 में सोलापुर के जलस्रोत को पेयजल के लिए आरक्षित किया गया था। मुम्बई में तो खारे पानी का ही संकट उत्पन्न हो गया है। भूगर्भीय मीठा पानी लगभग समाप्त होने के कगार पर है। मुम्बई में जमीन की भीतरी बनावट कुछ ऐसी है कि बारिश का पानी एक निर्धारित सीमा तक ही जमीन के भीतर तैरता रहता है, जो प्रसंस्कृत होकर अपने आप पीने योग्य बन जाता है। इस बार भी मुम्बई सहित अन्य क्षेत्रों मे पेयजल संकट गंभीर है। हालांकि रविवार को तेजी बारिश की वजह से लोगों को थोड़ी राहत मिली है।
यही हाल कमोबेश बेंगलूरू गुरुग्राम, कानपुर, नैनीताल, पटना, बेंगलुरु, जयपुर , जैसे शहरों में भी है। बेंगलुरू में 1973 के मुकाबले शहर के आसपास 79 फीसदी जलस्रोत खत्म हो चुके हैं। गुरुग्राम में 1950 के दशक में 600 के मुकाबले महज 40 तालाब अब बचे हैं। 1974 में गुरुग्राम में छह मीटर नीचे पानी मिल जाता था जो अब 45 से 55 मीटर नीचे चला गया है। कानपुर गंगा के किनारे होने के बावजूद यहां के लोगों को भारी जलसंकट का सामना करना पड़ता है। पटना का भी यही हाल। यहां पर पेयजल रखरखाव ठीक न होने और प्रदूषण की वजह से ये हालात हैं। नैनीताल में झीलों के सिकुड़ने से पेयजल संकट है।