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कब और किसने तैयार की EVM मशीन?
साल 1974 में अमेरिका के कैलिफोर्निया में स्थानीय चुनावों में पहली बार EVM मशीन प्रयोग हुआ। इसके बाद इसका इस्तेमाल इलुनॉयस, शिकागो में हुआ। इसके एक साल बाद यानी साल 1975 में अमेरिकी सरकार ने इन मशीनों की सही जानकारी के लिए एक अधिकारी नियुक्त किया। जिसके बाद से EVM से चुनाव किए जाने लगे। वहीं बात भारत की करें तो यहां साल 1982 में केरल के एक उपचुनाव के लिए सबसे पहले मशीन का इस्तेमाल किया गया लेकिन अदालत ने मशीनों के इस्तेमाल को खारिज कर दिया। इसके बाद साल 2003 के चुनावों में इसका व्यापक प्रयोग किया गया।
कैसे काम करती है EVM?
भारत में ईवीएम को सरकारी कंपनी इलेक्ट्रॉनिक्स कारपोरेशन ऑफ इंडिया और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड मिलकर बनाती है। EVM से जुड़े सभी उपकरणों का निर्माण यही दो कंपनिया करती है। सबसे अच्छी बात ये है कि इनके लिए किसी तरह के बिजली की जरूरत नहीं होती। ये बैटरी से चलती हैं।
क्यों नहीं हो सकती है हैक?
ईवीएम को हैक करना लगभग असंभव है। वोटों का डाटा ईवीएम की कंट्रोल यूनिट की मेमोरी में लंबे वक्त तक रिकॉर्ड रह सकता है। सबसे अच्छी बात ये है कि ये मशीनें किसी इंटरनेट नेटवर्क से नहीं जुड़ी होतीं ऐसे में इन्हें हैक करना संभव नहीं। हालांकि कई लोगों का मानना है कि इनकी अपनी फ्रीक्वेंसी होती हैं, जिसके जरिए इन्हें हैक किया जा सकता है, लेकिन अभी तब ये केवल दावे ही हैं। इसके अलावा इससे छेड़खानी भी नहीं की जा सकती है क्योंकि हर एक वोट के बाद कंट्रोल यूनिट को फिर अगले वोट के लिए तैयार करना होता है जिसकी वजह से इन पर फटाफटा बटन दबाकर वोट नहीं किए जा सकते हैं।
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कितनी है कीमत?
90 के दशक में जब पहली बार EVM खरीदी गई थी तो इसकी कीमत 5,500 रुपए थी। इसके बाद साल 2014 में एक मशीन की कीमत 10,500 रुपये थी।साल 2019 के इसकी कीमत 14,000 रुपये थी। ।