राजन ने कहा कि तवे पर डोसा बनाने की तकनीक आज भी पारंपरिक ही है, लेकिन तवे पर हाथ फेरने वाले कारीगर की मजदूरी बढ़ गई है
कोच्चि। महंगाई पर लगाम लगाने के भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के दावे के बावजूद इंजीनियरिंग की एक छात्रा को एक सवाल सता रहा है…आखिर उसके पसंदीदा व्यंजन डोसे के दाम क्यों बढ़ते जा रहे हैं? छात्रा ने यह सवाल आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन के सामने रख दिया, तो उन्होंने इसके जवाब में ठीकरा तवे और डोसा बनाने वाले पर फोड़ दिया।
राजन ने कहा कि तवे पर डोसा बनाने की तकनीक आज भी पारंपरिक ही है, लेकिन तवे पर हाथ फेरने वाले कारीगर की मजदूरी बढ़ गई है। उन्होंने कहा, वास्तव में डोसा बनाने की प्रौद्योगिकी नहीं बदली है। आज भी व्यक्ति इसे (चावल का घोल ) तवे पर डालता है, फैलाता है और उस पर मसाला डालकर तैयार करता है।
एक कार्यक्रम में छात्रा ने पूछा था, जब मुद्रास्फीति बढ़ती है तो डोसे के दाम भी बढ़ते हैं, लेकिन जब मुद्रास्फीति नीचे आती है तो डोसे की कीमत नीचे नहीं आती। हमारे प्रिय व्यंजन के साथ ऐसा क्यों होता है।
राजन ने अपने जवाब में आगे कहा कामगारों का उपयोग कई ऐसे उत्पादक क्षेत्रों में किया जा सकता है, जहां उत्पादकता काफी बढ़ी है, जैसे फैक्ट्री का काम, बैंकिंग आदि। लेकिन कुछ सेक्टर की तकनीक में कोई सुधार नहीं आया है, ऐसे सेक्टरों में उत्पाद के दाम जल्दी बढ़ते हैं। डोसे के साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा है। इसी वजह से वह महंगा हो रहा है।