बहुमुखी प्रतिभा के धनी एम करुणानिधि समाजवादी और बौद्धिक आदर्शों को प्रोत्साहित करने वाली ऐतिहासिक व सुधारवादी कथाएं लिखने वाले रचनाकार के रूप में भी मशहूर हुए
कलाईनार: एक नास्तिक जो राजनीति का ‘भगवान’ बन गया, जानिए क्यों करुणानिधि पीले रंग का शॉल पहनते थे?
नई दिल्ली। कलाईनार’ यानि कि “कला का विद्वान” अपने चाहने वालों के बीच में द्रविड़ राजनीतिक दल द्रविड़ मुन्नेत्र कज़गम (डीएमके) के प्रमुख करुणानिधि इसी नाम से मशहूर थे। तमिलनाडु के पांच बार मुख्यमंत्री रहे करुणानिधि एक कामयाब राजनेता, फिल्म लेखक, साहित्यकार के साथ-साथ पत्रकार, प्रकाशक और कार्टूनिस्ट भी रहे। हमेशा काला चश्मा पहनने वाले करूणानिधि की आंखों में बहुत से सपने पले। सार्वजनिक जगहों पर करुणानिधि काला चश्मा और पीले रंग का शॉल पहने नजर आते। जो उनका सिग्नेजर स्टाइल था। उनके पहनावे के रंग पर कई बार सवाल भी उठे। काला चश्मा पहनने के पीछे एक हादसे में उनकी आंखों में लगी चोट वजह थी लेकिन पीले शॉल पहनने के पीछे की कहानी क्या थी ये कम लोग ही जानते हैं।
खुल गया राज, इसलिए करुणानिधि का मरीना बीच पर किया जाएगा अंतिम संस्कारDMK में शॉल का इतिहास ? पहले जानते हैं डीएमके पार्टी में इतिहास की तारीखों में कैसे शॉलनामा शुरू हुआ। करुणानिधि के राजनैतिक गुरु थे पेरियार ई. वी. रामास्वामी। पेरियार तर्कवादी, नास्तिक और वंचितों के समर्थक थे। उनकी विचारधारा से करुणानिधि काफी प्रेरित थे। दोनों के बीच का एक किस्सा मीडिया में आता है कि साल 1940 के दशक की बात है। द्रविड़ आंदोलन के संस्थापक ईवी रामास्वामी एक संगीत समारोह में शिरकत करने पहुंचे। समारोह में एक कलाकार ‘नादस्वरम’ वाद्ययंत्र बजा रहा था ( करूणानिधि का परिवार पारंपरिक रूप से संगीत वाद्ययंत्र ‘नादस्वरम’ बजाने का काम किया करता था )। इस दौरान वह तौलिये से अपने पीसने को भी पोंछ रहा था, पसीना पोंछने के बाद वह तौलिया को नीचे अपने पास ही रख देता। कहा जाता है कि कुछ वक्त बाद कालाकार तौलिए के इस्तेमाल करने की वजह से बीमार हो गया, थोड़ा आराम रहे उसने अपना तौलिया कंधों पर रख लिया था। इस संगीत समारोह को प्रायोजक इलाके का ऊपरी जाति का जमींदार था। इस जमींदार ने वाद्ययंत्र वादक ‘नादस्वरम’के तौलिये को कंधे पर रखने का विरोध किया। तौलिया हटाने का आदेश दिया। यहां बता दें कि कहा जाता है कि तथाकथित निचली जाति के करुणानिधि को बचपन में मंदिर में कमर के ऊपर कोई कपड़ा पहनकर प्रवेश नहीं मिलता था। रामास्वामी ने जमींदार के इस रवैये की निंदा की और समारोह का बहिष्कार कर चले गए। अगले दिन रामास्वामी ने ऐलान किया कि सभी द्रविड़ कजागम के सदस्यों अब से ऊपरी जाति के लोगों द्वारा पहना जाना वाला लंबा तौलिया अंगवस्त्रम के विरोध में थुंडू पहनेंगे ( तौलिया )। पेरियार तमिल समाज में जातिवाद और अंधविश्वास के खिलाफ आवाज उठाने के लिए उन्होंने सदस्योंं को काली शर्ट पहनने के लिए कहा।
द्रविड़ आंदोलन में शामिल सभी ने काली शर्ट पहनी। 1945 में ब्लैक शर्ट ब्रिगेड बनाने पर सबसे पहले करुणानिधि ने हामी भरी थी। वक्त बदला तो पार्टी का माहौल भी बदला। कहा जाता है कि समानता का प्रतीक बन चुका तौलिया पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं में भेदभाव को भी दर्शा रहा था। छोटे नेताओं को हाथ से बुने तौलिए दिए जाते और बड़े नेताओं को कश्मीरी शॉल। जिसका कुछ लोगों ने विरोध भी किया। 80 के दशक में पार्टी में कई नेताओं और कार्यकर्ताओ में बहुत से तौलिए चलन में आए। करुणानिधि भी सफेद से रंगीन तौलिया धारण करने लगे। कुछ डिजाइनदार पहनने लगे। कराई वेश्टी और केराई थुंडू, रंगीन शर्ट, बड़े फ्रेम के चश्मे करुणानिधि की ड्रेडमार्क बन गया। कहा जाता है कि अपने गंजेपन को छुपाने के लिए करूणानिधि ‘फर वाली टोपी’ पहनते थे। 1990 के बाद सियासी पार्टियों के नेताओं का तौलिये से मोहभंग हो गया। राजनेता सादा कमीज पैंट, धोती पहने नजर आने लगे। पार्टियों ने अपना रंग भी चुन लिया। दलित पार्टियों नीला, मुस्लिम नेताओं ने हरा, पाट्टली मक्कल कची ने पीला रंग चुना। डीएमके ने दो रंगों को चुना – पीला और लाल। वहीं एआईएडीएमके नेता जयललिता पार्टी ने कई बार रंग बदले लेकिन उनका पसंदीदा रंग हरा ही रहा। अब एक बार फिर से पीले रंग का शॉल पहनने के पीछे करुणानिधि को अंधविश्वासी भी कहा जाने लगा था। ज्योतिष उनके पीले रंग के शॉल को पहनने के पीछे वजह बताते थे कि करुणानिधि की राशि ऋषभ है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ज्योतिषी कहते थे कि पीला रंग इसलिए पहनते थे जिससे उन्हें सेहतमंद शरीर और दिमाग मिले। मगर करुणानिधि ने ज्योतिषों की बात को मानने से इनकार कर दिया और ज्योतिषी को भी कोरी बकवास बताते हुए खारिज किया।
जब सत्य साईं को बताया पीला शॉल पहनने का राज कहा जाता है कि पीला रंग आधुनिक तमिलनाडु के शिल्पकार करुणनिधि का पसंदीदा रंग था। करूणानिधि कई सालों तक इसी रंग का शॉल ओढ़ते रहे। पीले रंग की शुरूआत वहीं से होती है और यह द्रमुक में सभी जगह देखा जा सकता है विशेष तौर पर पार्टी की सभाओं में। करूणानिधि की बड़ी चुनावी रैलियों में मंच की पृष्टभूमि का रंग पीला था। चमकीले पीले पृष्ठभूमि के अलावा जो दूसरा सबसे महत्वपूर्ण रंग है, वह है पार्टी झंडे का लाल और काला रंग। दिलचस्प बात है कि पार्टी के चिन्ह उगता सूरज का रंग भी पीला है और इस रंग का इस्तेमाल द्रमुक के तमिल दैनिक मुरासोली में प्रमुख शीर्षकों और पृष्ठभूमि में होता है। पीले रंग पर पार्टी के नेताओं का कहना था कि मीडिया इन सब चीजों पर भी गौर करता है। हम तर्कवादियों की पार्टी हैं। एक बार उन्होंने पीला शॉल पहनने की वजह भी बताई। 2007 में एम करुणानिधि ने कहा था कि,” वह हमेशा पीले रंग का शॉल और स्कार्फ इसलिए नहीं पहनते क्योंकि वह अंधविश्वासी बन गए हैं, बल्कि बुद्ध ने भी ऐसा ही शॉल पहना था। बता दें कि तमिल में गौतम बुद्ध को तर्कसंगत व्यक्ति के रूप में देखा जाता है। जो समाजिक कुरीतियों के खिलाफ लड़े। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सत्य साईं बाबा ने करुणानिधि से सदैव पीला रंग के शॉल पहने के पीछे का कारण पूछा तो उन्होंने जवाब दिया “गौतम बुद्ध का अंगवस्त्र एक पीले रंग का टुकड़ा था। जवाब सुनकर बाबा खुश हुए।” करुणानिधि ईश्वर में यकीन नहीं करते थे। भगवान के अस्तित्व से इनकार करने वाला करूणानिधि को खुद उसके अनुयायियों ने ‘भगवान’ बनाकर ‘पूजना’ शुरू कर दिया।