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पत्नी ने बीमा कंपनी से पति की मौत पर मांगा प्यार का मुआवजा, SC ने अलग से देने से किया इनकार

प्यार की क्षति के आधार पर अलग से मुआवजा देने के High Court के आदेश को एससी ने खारिज कर दिया।
सड़क दुर्घटना में संपत्ति का नुकसान, साथी के अभाव का नुकसान और अंतिम संस्कार के लिए मुआवजा मिलता है।
Loss of love का मुआवजा अलग से नहीं दिया जा सकता।

नई दिल्लीJul 01, 2020 / 02:07 pm

Dhirendra

प्यार की क्षति के आधार पर अलग से मुआवजा देने के High Court के आदेश को एससी ने खारिज कर दिया।

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) ने सड़क दुर्घटना ( Road Accident ) में एक व्यक्ति के मौत के मामले में दावे की सुनवाई करते हुए साफ कर दिया कि प्यार का मुआवजा अलग से नहीं दिया जा सकता। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले ने कहा कि दाम्पत्य सुख की क्षति के मुआवजे में ही प्रेम या प्यार ससिहत वात्सल्य की क्षति भी कवर होगी।
इसके लिए अलग से मद बनाकर मुआवजा तय नहीं किया जा सकता। यह फैसला सुनाते हुए शीर्ष अदालत ने दाम्पत्य सुख की क्षति (Loss of marital happiness ) के साथ प्रेम और वात्सल्य खो जाने का मुआवजा देने के हाईकोर्ट के आदेश को भी खारिज कर दिया। निरस्त कर दिया।
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में कहा कि मुआवजा देने की एक समान प्रणाली होनी ( There should be a uniform system of compensation ) चाहिए। यह पहले ही तय किया जा चुका है कि सड़क दुर्घटना में मृत्यु के मामले में तीन मदों में मुआवजा तय होगा। ये मदें हैं, संपत्ति का नुकसान, साथी ( दाम्पत्य सुख, माता-पिता का सुख और भाई बहन के साथ का सुख ) के अभाव का नुकसान तथा अंतिम संस्कार का खर्च।
प्रेम, प्यार या मोहब्बत के नुकसान का खर्च उक्त मद में ही सम्मिलित है उसे अपनी इच्छा या जरूरत के हिसाब से अलग से मद नहीं बनाया जा सकता।

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हाईकोर्ट और मोटर ट्रिब्यूनल ( Motor tribunal ) दाम्पत्य सुख और अन्य सुख के खो जाने की क्षति का मुआवजा दिलवा सकते हैं लेकिन इसके साथ प्रेम की क्षति का मुआवजा अलग से नहीं दिया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला बीमा कंपनी और पीड़ित पक्ष दोनों की अपील पर दिया।
क्या है मामला

दरअसल, पीड़िता के पति की 1998 में सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। पीड़िता का पति कतर में काम करता था। 1998 में छुट्टी पर पंजाब ( Punjab ) के राजपुरा में आया हुआ था। अवकाश के दौरान ही उसकी सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। मोटर दावा न्यायाधिकरण ने 50 लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया।
लेकिन पत्नी ने हाईकोर्ट में प्यार की क्षति का मुआवजा देने की अपील की। पत्नी की मांग पर हाईकोर्ट ने मुआवजे को बढ़ा दिया जिसके खिलाफ बीमा कंपनी ( Insurance company ) सुप्रीम कोर्ट आई थी। सुप्रीम कोर्ट ने माममे पर विचार के बाद साफ कर दिया कि प्रेम की क्षति का मुआवजा अलग ने नहीं दिया जा सकता है।

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