1988 में शुरु हुई थी एड्स दिवस का सिलसिला
आपको बता दें कि James W. Bunn और Thomas Netter ने 1988 में एड्स के प्रति लोगों में जागरुकता फैलाने के लिए इस दिन की शुरुआत की थी। इसका मकसद था HIV के प्रति लोगों को जागरुक किया जा सके। जगह-जगह कार्यक्रम आयोजित करके लोगों को बताया गया एड्स जैसे खतरनाक बीमारी से कैसे खुद को बचाया जा सकता है।
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हर वर्ष दी जाती है एक थीम
आपको बता दें कि एड्स के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए एक थीम के तहत एक दिसंबर को दुनियाभर में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। हर वर्ष एक थीम दी जाती है और उसी के अनुसार लोगों को बताया जाता है। बीते वर्ष विश्व एड्स दिवस की थीम थी ‘My Health, My Right’ जबकि इस वर्ष 2018 की थीम है ‘Know Your Status’। इस बार की थीम के मुताबिक लोगों को HIV ‘टेस्ट कराने के लिए प्रेरित करना है। ऐसा आकलन है कि लोगों को यह पता ही चल पाता है कि वह HIV पीड़ित है। करीब 75 प्रतिशत लोगों को ही यह पता होता है कि उन्हें HIV एड्स है। असुरक्षित यौन संबंध बनाने से एड्स फैसला का ज्यादा खतरा होता है।
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लाल रंग का रिबन है एड्स जागरुकता की पहचान
आपको बता दें कि लोगों को जागरुक करने और एक दिसंबर के दिन को समर्थन करने वाले लोग लाल रंग के एक रिबन से बना एड्स जागरुकता का सिंबल अपने शरीर पर लगाते हैं। इस सिंबल को 1991 में न्यूयॉर्क में बनाया गया था। इस दौर में एड्स से पीड़ित लोगों के प्रति सबका नजरिया बेहद ही खराब हो गया था। इसलिए लोगों में इसकी जागरुकता बढ़ाने के लिए एक दिसंबर के दिन को चुना गया और विश्वभर में लोग कार्यक्रम आयोजित संदेश देते हैं।