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शहादत का अपमान: शहीद जवान के परिवार से मांगा कफन का पैसा

Published: Apr 15, 2015 12:31:00 pm

एक तरफ माओवादी हमलों में हर चौथे दिन एक जवान शहीद हो रहा है और दूसरी तरफ राज्य सरकार उनकी शहादत का अपमान करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।

रायपुर/गरियाबंद. एक तरफ माओवादी हमलों में हर चौथे दिन एक जवान शहीद हो रहा है और दूसरी तरफ राज्य सरकार उनकी शहादत का अपमान करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। अब एक नए मामले में गरियाबंद पुलिस ने माओवादी हमले में शहीद के परिजनों से कफन की राशि वापस मांगी है।

शहीद की मां कलावती पांडेय ने राजधानी पहुंचकर पुलिस महानिदेशक के सामने इस राशि को माफ किए जाने की गुहार लगाई है। 24 मई-2011 को गरियाबंद के सोनाबेड़ा जंगल में माओवादियों से मुठभेड़ में 9 पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे। इसमें किशोर पांडेय भी शामिल थे। गरियाबंद के रक्षित निरीक्षक कार्यालय ने त्वरित रूप से पांडेय परिवार को अंतिम संस्कार के लिए 10 हजार की सहायता राशि दी थी। परिवार के लोग इससे अनजान थे कि उन्हें अशासकीय निधि वेलफेयर फंड से राशि दी रही है। रकम की वापसी के लिए रक्षित कार्यालय से पहला पत्र 8 जून-2014 को किशोर के भाई और पुलिसकर्मी कौशल पांडेय को मिला। आर्थिक तंगी से जूझ रहे पांडेय परिवार इस रकम को नहीं दे सका तो 12 मार्च को रक्षित निरीक्षक निलेश द्विवेदी ने रिमाइंडर भेजकर रकम वापस करने की हिदायत दी।

शहीद हुए किशोर पांडेय के परिजनों को पांच लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी गई थी। उसके भाई कौशल को अनुकंपा नियुक्ति भी दी गई। नियम के मुताबिक अंतिम संस्कार के लिए दी गई राशि फौरी तौर से अशासकीय निधि से दी जाती है, जिसका बाद में समायोजन किया जाना होता है, इसलिए सरकारी नियमों के तहत उन्हें पत्र दिया गया है। इसमें गलत कुछ भी नहीं है।
अभिषेक पाठक, पुलिस अधीक्षक, गरियाबंद

भाई के अंतिम संस्कार के लिए दी गई राशि मेरी मां ने ही प्राप्त की थी। वे ही बता पाएंगी कि राशि वापस करनी है या नही। अब मैं क्या बोलूं। बस, इतना कह सकता हूं कि पैसों की वापसी के लिए रक्षित कार्यालय ने नोटिस जारी तो किया है।

कौशल पांडेय, शहीद का भाई और आरक्षक, रक्षित कार्यालय, गरियाबंद

पत्रिका व्यू: संवेदनशील बने सरकार
शहीद के अंतिम संस्कार के लिए सरकारी खजाने से दी गई राशि को वापस मांगना नियमत: सही है, लेकिन मानवीय दृष्टिकोण से देखें तो एक तरह से यह शहादत का अपमान है। भ्रष्टाचार के आरोपी सरकारी खजाने की अरबों-करोड़ों की राशि दबाए बैठे हैं। क्या सरकार उनसे वसूली कर पा रही है? 10 हजार की मामूली राशि के लिए नोटिस भेजना वह भी उस राशि के लिए जिससे शहीद के कफन का इंतजाम किया गया हो, न केवल शर्मनाक है बल्कि असंवेदनशील की पराकाष्ठा भी है। सरकार को चाहिए कि वह हर मामले को नियम के तराजू पर न तौले।

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