संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ( United Nations Population Fund ) की विश्व जनसंख्या रिपोर्ट 2020 में ( World Population Report 2020 ) ये अनुमान लगाया गया है कि पूरे विश्व में 142 मिलियन लड़कियां गायब हैं और भारत में जेंडर चयन के कारण 46 मिलियन लड़कियां गायब हैं। इस वर्ष की रिपोर्ट का शीर्षक है, ‘मेरी इच्छा के विरुद्ध: महिलाओं और लड़कियों को नुकसान पहुंचाने वाली प्रथाओं को धता बताना और समानता को कमजोर करना ’।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ( UNFPA ) के अनुमानों से पता चलता है कि भारत में कुल लापता लड़कियों में 3 में से 2 का जन्म से पहले जेंडर परीक्षण कराया गया, वहीं जन्म के बाद की महिला मृत्यु दर लगभग 3 में से 1 है।
UNFPA के कार्यकारी निदेशक डॉ. नतालिया कनेम ( UNFPA Executive Director Dr Natalia Kanem ) ने मंगलवार को रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि जन्म से पहले जेंडर जांच के कारण दुनियाभर में अनुमानित 1.2 मिलियन लड़कियों में से लगभग 90 प्रतिशत प्रतिवर्ष जन्म नहीं ले पाती हैं।
उन्होंने कहा कि प्रसव पूर्व जेंडर आधारित यौन चयन के कारण लापता लड़की के जन्मों के अनुमानों के अनुसार, भारत में लगभग 460,000 लड़कियां हर साल जन्म के समय दम तोड़ देती हैं।
भारत के 9 राज्यों में लिंगानुपात 900 से कम
भारत की नमूना पंजीकरण प्रणाली सांख्यिकीय रिपोर्ट 2018 में जन्म के समय लिंगानुपात ( Gender Ratio ) दर्ज किया गया है जो 2016-18 की अवधि के दौरान पैदा हुए प्रत्येक 1000 लड़कों में 899 लड़की है। भारत के 9 राज्यों में जन्म के समय लिंगानुपात 900 से कम है। इनमें हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब और बिहार शामिल है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बाल विवाह ( Child Marriage ), पुत्र की प्राथमिकता और जेंडर चयन के कारण इस तरह के परिणाम देखने को मिल रहे हैं। यूएनएफपीए ने कहा कि बेटे की चाहत और जेंडर चयन के परिणामस्वरूप 142 मिलियन से अधिक लड़कियां विश्व स्तर पर लापता हो गई हैं और भारत में 46 मिलियन लड़कियां लापता हैं। यह बहुत गंभीर है और अस्वीकार्य है और इसे तुरंत बदलने की आवश्यकता है।
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उन्होंने कहा कि लड़कियों की संख्या में कमी को दूर करने के लिए असमान शक्ति संबंधों, संरचनाओं और मानदड़ों को बदलना पड़ेगा। यूएनएफपीए इंडिया रिप्रेजेंटेटिव ने कहा कि हमें समानता, स्वायत्तता और पसंद के सिद्धांतों के आधार पर दुनिया की ओर बढ़ने की जरूरत है।
कोरोना महामारी से ऐसे मामलों में बढ़ोतरी
रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में कुछ असमाजिक प्रथाओं के खत्म होने से लड़कियों की संख्या में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है, लेकिन कोरोना वायरस महामारी ( Coronavirus epidemic ) के कारण इसका प्रभाव उल्टा पड़ने लगा है। एक हालिया विश्लेषण से पता चला है कि अगर सभी तरह की सेवाओं और कार्यक्रमों को छह महीने तक बंद कर दिया जाता है, तो अतिरिक्त 13 मिलियन लड़कियों को बाल विवाह के लिए मजबूर किया जा सकता है। डॉ. कनेम कहती हैं, ‘महामारी दोनों ही हमारे काम को कठिन और अधिक जरूरी बना देती है क्योंकि अब कई और लड़कियां खतरे में हैं।’