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Aantarctica से दिल्ली के आकार का हिमखंड टूटा, ..ऐसा हुआ तो समुद्र में 70 मीटर तक बढ़ सकता है जल स्तर

locationनई दिल्लीPublished: Feb 28, 2021 06:57:30 pm

Submitted by:

Anil Kumar

HIGHLIGHTS

Glaciers In Antarctica: अंटार्कटिका से हिमखंड का एक विशाल भाग टूट गया। इसका आकार 1270 किलोमीटर का है।
इसकी विशालता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि इस हिमखंड का आकार राजधानी दिल्ली जितनी बड़ी है।

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Aantarctica breaks Delhi-shaped iceberg, Sea level can rise up to 70 meters

नई दिल्ली। पृथ्वी के तापमान में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, इसके कारण मौसम में असमय परिवर्तन देखने को मिल रहा है। साथ ही हिमखंडों के पिघलने की घटना भी बढ़ने लगी है। ऐसे में वैज्ञानिकों ने समय-समय पर चेतावनी जारी करते हुए पर्यावरण के प्रति अलर्ट रहने और खास रणनीति बनाने के लिए दुनियाभर के देशों से अपील की है।

अब एक ऐसी घटना घटी है, जो चिंताजनक है। दरअसल, अंटार्कटिका से हिमखंड का एक विशाल भाग टूट गया। इसका आकार 1270 किलोमीटर का है। इसकी विशालता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि इस हिमखंड का आकार राजधानी दिल्ली जितनी बड़ी है। देश के दो सबसे बड़े शहरी क्षेत्रों दक्षिणी और उत्तरी दिल्ली नगर निगम (SDMC और NDMC) का आकार 1292 वर्ग किलोमीटर है।

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टूटे हुए हिमखंडा की मोटाई 150 मीटर है। इस टूटे हुए विशाल हिमखंड की तस्वीर जारी करते हुए ब्रिटिश अंटार्कटिका सर्वे ने बताया है कि यह घटना बर्न्ट आइस शेल्फ क्षेत्र में हुई है। हिमखंड के इस विघटन को ‘काल्विंग’ कहा जाता है। जिसमें जमे हुए क्षेत्र से विशाल हिमखंड अलग हो जाते हैं।

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प्रतिदिन एक किलोमीटर तक टूट रहा था हिमखंड

जानकारी के मुताबिक, काल्विंग नवंबर 2020 में सबसे पहले दर्ज की गई थी, पर जनवरी 2021 तक हिमखंड के प्रतिदिन टूटने की रफ्तार 1 किलोमीटर से अधिक हो गई थी। इसके बाद शुक्रवार को विशाल हिमखंड के टूटने की घोषणा की गई।

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वैज्ञानिक लगातार हिमखंड के टूटने की घटना पर नजर बनाए हुए हैं और इसके कारण वायुमंडल पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में भी जानकारी देते रहते हैं। वैज्ञानिकों ने संभावना जताई है कि यदि अंटार्कटिका पर जमी बर्फ की पूरी परत पिघल जाए यानी कि अंटार्कटिका के हिमखंड टूट कर समुद्र में पिघल जाए तो जलस्तर 70 मीटर तक बढ़ जाएगा। यदि ऐसा होता है तो समुद्र किनारे स्थित कई शहर और द्वीप पूरी तरह से डूब जाएंगे। इससे पहले भी कई बार वैज्ञानिकों की ओर से इशारा किया गया है।

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