ध्रुवीय क्षेत्रों पर क्या पड़ेगा प्रभाव जर्नल साइंस एडवांस में प्रकाशित हुए इस अध्ययन में तापतान में वृद्धि का आर्कटिक और अंटार्कटिका के वन्य जीवन, टुंड्रा वनस्पति, मीथेन के रिसाव और बर्फ की चादरों पर पड़े प्रभावों के बारे में विस्तार से बताया गया है।
अमरीका की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया (यूसी) डेविस के शोधकर्ताओं ने अध्ययन में पाया है कि यदि ग्लोबल वार्मिग के कारण पृथ्वी का तापमान दो डिग्री बढ़ता है तो इसका ध्रुवीय क्षेत्रों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है।
इस अध्ययन के प्रमुख लेखक एरिक पोस्ट ने कहा कि पिछले एक दशक में हुए कई बदलाव इतने नाटकीय हैं कि वे आपको आश्चर्यचकित करते हैं। साथ ही यह सोचने को मजबूर करते हैं कि गर्मी के कारण अगले दशक में पृथ्वी का स्वरूप किस तरह से बदल सकता है।
उन्होंने कहा कि यदि हम पुराने चित्रों की तुलना करें तो पाएंगे कि आज भी आर्कटिक का स्वरूप वैसा ही है। यब बस खुद को समझाने वाली बात है। इसका स्वरूप लगातार बदल रहा है। यदि हम समय रहते इससे बचने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाते तो यह निश्चित है कि कुछ दशकों के बाद ही आर्कटिक से बर्फ गायब हो सकती है।
शोधकर्ताओं के अनुसार यादि हम 40 साल बाद भी तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे बनाए रखना चाहते हैं तो हमे नया दृष्टिकोण अपनाना होगा। आर्कटिक का तापमान लगातार बढ़ रहा है यदि इस गति पर काबू नहीं पाया गया तो अगले कुछ वर्षों में यहां का तापमान दो डिग्री सेल्सियस से अधिक पहुंच सकता है।
अध्ययन के अनुसार, यदि वैश्विक तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की भी वृद्धि होती है तो इससे आर्कटिक पर गहरा असर होगा। यहां के तापमान में सात डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि हो सकती है। वहीं अंटार्कटिका के तापमान में तीन डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो सकती है। यदि ऐसा हुआ तो इसके भयावह परिणाम देखने को मिल सकते हैं। ऐसे में समय रहते कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है।