अमरीका से किया पुर्नविचार का आग्रह
जानकारी के मुताबिक ट्रंप का बयान आने के कुछ घंटे बाद ही शुक्रवार को ब्रिटिश प्रधानमंत्री थेरेसा मे, फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने एक संयुक्त बयान में कहा, “हम सभी पक्षों द्वारा जेसीपीओए और इसके पूर्ण कार्यान्वयन के लिए बचनबद्ध हैं।” तीनों प्रमुखों ने कहा, “जेसीपीओए को संरक्षित करना हमारी साझा राष्ट्रीय सुरक्षा हित में है। तीनों नेताओं ने कहा कि वे अमरीकी प्रशासन और कांग्रेस से कोई भी कदम उठाने से पहले सुरक्षा के संबंध मे इस मुद्दे पर विचार करने का आग्रह करते हैं। ब्रसेल्स (बेल्जियम) में यूरोपीय संघ की विदेश नीति की प्रमुख फेडेरिका मोघरिनी ने ऐसा ही संदेश दिया, लेकिन उन्होंने अपना संदेश बेहद प्रभावी तरीके से दिया। उन्होंने कहा कि यह एक द्विपक्षीय समझौता है और यह किसी एक देश से संबंधित नहीं है और इसे रद्द करना किसी एक देश के हाथ में नहीं है। यह एक बहुपक्षीय समझौता है, जिसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा सर्वसम्मति से समर्थन मिला हुआ था।
क्या है ईरान परमाणु करार
दरअसल, 14 जुलाई 2015 को पी—5 देश अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, चाइना व रसिया ने ईरान के साथ परमाणु समझौता किया था, जिसको संयुक्त व्यापक कार्य योजना (जेसीपीओए) के नाम से जाना जाता है। इसके बाद जनवरी 2016 को इस समझौते को लागू किया था, जिसमें यूएन और आईएईए इंटरनेशल अटॉमिक एनर्जी एजेंसी ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम का निरीक्षण कर उसको पीसफुल करार दिया था और ईरान ने भी भविष्य में गैर—परमाणु हथियार समझौते का पालन करने पर प्रतिबद्धता जताई थी। अब जबकि ईरान इस परमाणु समझौते पर कायम है, बावजूद इसके अमरीका ने समझौते से अलग होने की घोषणा की है। वहीं पी—5 के अन्य देशों ने अमरीका के फैसले की निंदा करते हुए ईरान का समर्थन किया है। जिसका एक मुख्य कारण यह भी है कि अमरीका से अलग ईयू यूरोपियन यूनियन और अन्य देशों के ईरान से अच्छे व्यापारिक संबंध हैं, जिसको वह दांव पर नहीं लगाना चाहते।