गौरतलब है कि अस्पताल में भर्ती कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के उपचार में उपयोग होने वाली मलेरिया रोधी दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के प्रभावी होने या नहीं होने के संबंध में चल रहे परीक्षण को बंद कर रहा है। संगठन ने एड्स के मरीजों के उपचार को लेकर इस्तेमाल होने वाली दवा लोपिनाविर/रिटोनाविर (Lopinavir / Ritonavir) के परीक्षण को भी बंद कर दिया है।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार उसने परीक्षण की निगरानी कर रही समिति की सिफारिश स्वीकार कर ली है। हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और एचआईवी/एड्स के मरीजों के उपचार के लिए उपयोग होने वाली दवा लोपिनाविर/रिटोनाविर के परीक्षण को खत्म करने की मांग की गई थी। संगठन के अनुसार जो परिणाम सामने आए हैं, ये दर्शाते हैं कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और लोपिनाविर/रिटोनाविर के इस्तेमाल से ‘अस्पताल में भर्ती कोविड-19 के मरीजों की मृत्युदर में बहुत मामूली कमी को देखा गया है।’
संगठन ने बताया कि अस्पताल में भर्ती जिन मरीजों को ये दवाएं दी गईं,उनकी मृत्युदर बढ़ने का भी साक्ष्य नहीं है। संगठन का कहना है कि दवा के क्लीकल परिणाम में ऐसा कुछ भी सामने नहीं आया। ऐसे में दवा के परीक्षण समय गंवाना सही नहीं है। डब्ल्यूएचओ ने कहा कि यह फैसला उन मरीजों पर संभावित परीक्षण को प्रभावित नहीं करेगा, जो अस्पताल में भर्ती नहीं हैं या कोरोना वायरस के संपर्क में आने की आशंका के कारण पहले या कुछ देर बाद दवा ले रहे हैं।