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इसरो का विक्रम से टूटा संपर्क, चंद्रमा पर चीन के लैंडर में उगा कपास का पौधा

locationनई दिल्लीPublished: Oct 05, 2019 03:06:45 am

पहली बार चंद्रमा पर कोई जैविकीय विकास देखा गया
लैंडर के भीतर लूनर माइक्रो इकोसिस्टम रखा गया था
इस प्रयोग ने अंतरिक्ष एजेंसी को दिखाई एक नई राह

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नई दिल्ली। भले ही इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) के चंद्रयान-2 मिशन के अंतर्गत चंद्रमा पर हार्ड लैंडिंग के बाद विक्रम लैंडर से अब तक संपर्क न हो पाया है। लेकिन चंद्रमा पर मौजूद चीन के लैंडर ने एक बड़ी सफलता हासिल की है। चीन के लैंडर के भीतर अब चंद्रमा की सतह पर कपास का पौधा (कॉटन प्लांट) उगा है।
दरअसल, चीन के स्पेसक्राफ्ट ने बीते 3 जनवरी 2019 को चंद्रमा की सुदूर सतह पर लैंडिंग की थी और एक इतिहास रचा था। यह किसी देश द्वारा चंद्रमा के इस हिस्से पर भेजा गया पहला स्पेसक्राफ्ट था। इस स्पेसक्राफ्ट के पेलोड के एक 2.6 किलोग्राम का छोटा सा पृथ्वी की तरह का वातावरण भी है, जिसे लूनर माइक्रो इकोसिस्टम (एलएमई) कहा जाता है।
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पूरी तरह से सील इस सिलिंडर के आकार वाले एलएमई की लंबाई केवल 18 सेंटीमीटर और परिधि 16 सेंटीमीटर है। इस एलएमई के भीतर जीवन के प्रकार वाली छह चीजे हैं, जो पूरी तरह पृथ्वी की तरह वाले माहौल में हैं। बस इनमें माइक्रो-ग्रैविटी और रेडिएशन नहीं है।
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एलएमई के भीतर कपास के बीज, आलू के बीज, सफेद सरसों के बीज, यीस्ट, फल पर लगने वाले कीड़े के अंडे (फ्रूट फ्लाई एग्स), खरपतवार जैसे छह बीज शामिल हैं।
चीन द्वारा किया गया यह अभूतपूर्व कार्य चंद्रमा पर किसी जैविकीय विकास वाला पहला प्रयोग है। हालांकि इन सभी के बीच केवल कपास के बीजों ने ही अच्छे परिणाम दिखाए हैं।

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चीन के लैंडर के भीतर यह प्रयोग जनवरी 2019 में किया गया था, जब लैंडर चंद्रमा पर पहुंचा था। उस वक्त इस प्रयोग को अंजाम देने वाली टीम ने सोचा था कि यह केवल एक पत्ती (कपास की पत्ती) भर है, लेकिन अब डाटा दिखाता है कि वहां दो पत्तियां हैं।
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इसकी तस्वीर को इमेज प्रोसेसिंग और डाटा एनालिसिस के आधार पर 3D रूप में तैयार किया गया और इसमें स्पष्ट रूप से नजर आता है कि वहां पर दो पत्तियां उगी हैं। हालांकि छह में से बाकी पांच ने किसी तरह के सकारात्मक परिणाम नहीं दिखाए हैं।
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इस एलएमई को गर्म रखने के लिए कोई इंतजाम नहीं किया गया है। इसलिए पहले लूनर डे (पृथ्वी के करीब 14 दिनों के बराबर) के बाद कपास का अंकुर नष्ट हो गया, क्योंकि वहां का तापमान माइनस 190 डिग्री सेल्सियस तक नीचे पहुंच गया था। लेकिन फिर भी एलएमई कितना लंबा चल सकता है यह जांचने के लिए प्रयोग जारी रहा।
चीन के इस मिशन की जब योजना बनाई जा रही थी, उस वक्त यह चर्चा की गई थी कि वहां पर एक छोटा सा कछुआ भी भेजा जाएगा, लेकिन अभियान की सीमाओं के चलते ऐसा नहीं हो सका।
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