दस्सू एविएशन के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने कहा कि अगर कभी इस मामले पर कोई भी जांच हुई तो दस्सू के पास इस डील से जुड़े सभी तथ्य मौजूद हैं। उन्होंने रिलायंस के साथ दस्सू के संबंधों कहा कि भारतीय ग्रुप के साथ 2012 उनकी कंपनी का रिश्ता है।एक भारतीय मीडिया हाउस को दिए ताजा इंटरव्यू में ट्रैपियर ने कहा कि इस डील के दाम बढ़ने को लकेर जो अफवाह फैलाई जा रही है, उसका कोई आधार नहीं है। उन्होंने खुलासा किया कि मोदी सरकार ने 2014 के मुकाबले 9 प्रतिशत कम दाम पर यह डील फाइनल की है। डील का खुलासा करते हुए उन्होंने कहा कि रिलायंस डिफेंस को केवल 850 करोड़ रुपये के ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट मिलेंगे। ट्रैपियर ने कहा, ‘रिलायंस के साथ हमारी पार्टनरशिप है, लेकिन इसकी शुरुआत 2011 में हुई थी जब हम भारत में एक पार्टनर तलाश रहे थे। लम्बे शोध के बाद दस्सू ने रिलायंस का चुनाव किया क्योंकि वह इस देश की सबसे बड़ा औद्योगिक घराना है जिसको भारत में उद्योग लगाने और चलने की बेहतर जानकारी है।
दस्सू के सीईओ ने रिलायंस डिफेंस के साथ संयुक्त उपक्रम ऑफसेट डील में 30 हजार करोड़ रुपये मिलने के आरोप को खारिज किया। उन्होंने कहा कि यह आंकड़ा गलत है और रिलायंस डिफेंस कि ऑफसेट डील में केवल 850 करोड़ रुपये मिलेंगे। उन्होंने कहा, “अभी हमने ज्वाइंट वेंचर में 70 करोड़ रुपये का कैपिटल इन्वेस्टमेंट किया है। इसमें 51 प्रतिशत हिस्सा रिलायंस का है। काम करने के साथ धीरे-धीरे हम शेयर पूंजी बढ़ाते जाएंगे। हमारी योजना इस आंकड़े को 850 करोड़ रुपये तक ले जाने की है।”
एरिक ट्रैपियर ने इन आरोपों को खारिज किया कि भारत सरकार ने उन्हें ऑफसेट परमिट रिलायंस को देने के लिए बाध्य किया था। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति ओलांद के बयां पर अधिक कुछ कहने से इंकार किया और कहा कि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलांद के विवादित बयान पर दस्सू और भारत सरकार का स्पष्टीकरण पहले ही आ चुका है। उन्होंने कहा कि दस्सू और रिलायंस लंबे समय से एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। इस जुड़ाव का भारत या फ्रांस की सरकारों से कोई लेना देना नहीं है।