अनावश्यक रूप से हुए इस ऑपरेशन के बाद महिला की मौत हो गई। दरअसल ऑपरेशन के बाद वो महिला लगभग दो महीने तक जिंदगी और मौत के बीच झूलती रही आखिर में उनका निधन हो गया। इस वाक्ये के बाद साल 2015 मे एक ज्यूरी ने न्याय की मांग करते हुए मृत महिला के परिवार को 20 मिलियन डॉलर देने की घोषणा की।
लेकिन बाद में कोर्ट ने ये कहते हुए दिए जाने वाले इस राशि पर रोक लगा दी कि ये एक सामान्य सी लापरवाही की घटना थी और इस सिलसिले में उन्हें एक डॉलर नहीं दिया जाएगा। कोर्ट ने नैय्यर परिवार के दावे को गलत ठहराया और उनके परिवार को अस्पताल की ओर से दिए जाने वाले मुआवजे पर रोक लगा दिया।
कोर्ट का कहना था कि विमला नैय्यर के परिवार को चिकित्सा में कदाचार का तर्क देना चाहिए था जिसके अंतर्गत मुआवजे की राशि दिया जाना सीमाबद्ध है। कोर्ट के इस फैसले से नैय्यर परिवार काफी नाखुश है और उनका मानना है कि कोर्ट ने उनके साथ न्याय नहीं किया है।
हैरान करने वाली बात तो ये है कि आखिर जो महिला इतने लंबे समय से एक ही अस्पताल में अपने उपचार के लिए जाती रही वहीं उसके साथ इस हद तक लापरवाही कैसे हुआ और इसका जिम्मेदार कौन है और ऐसा क्यों हुआ? हालांकि अस्पताल के लापरवाही का ये कोई नया किस्सा नहीं है जहां मरीज और उसके परिवार को अस्पताल की इस लापरवाही के चलते भुगतना पड़ा है बल्कि आजकल तो ऐसे किस्सों का होना काफी आम है।