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जर्मन कोर्ट के फैसले ने पेश की नजीर, दुनिया भर में करीब तीस हजार मृत लोगों के फेसबुक अकाउंट

Published: Jul 13, 2018 12:43:13 pm

Submitted by:

Mohit Saxena

जर्मन अदालत ने फेसबुक कंपनी को आदेश दिया कि वो मृत बेटी के अकाउंट को चलाने की इजाजत उसकी मां को दे।

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जर्मन अदालत ने मृत लोगों के फेसबुक अकाउंट पर सुनाया ऐतिहा​सिक फैसला

बर्लिन। फेसबुक पर मृत व्यक्तियों के अकाउंट को लेकर जर्मनी की शीर्ष अदालत के ऐतिहासिक फैसले ने नजीर पेश की है। इस फैसले की मदद से भारत और अन्य देशों में इस तरह के अकाउंट पर हक को लेकर रास्ता साफ हो सकता है। दुनिया भर में अभी 30 से 40 चलीस हजार मृत फेसबुक अकाउंट मौजूद हैं। इन अकाउंट का गलत इस्तेमाल भी हो जाता है। अगर यह फैसला देश में लागू होता है तो अभिभावक इस अकाउंट को सहेज सकेंगे। गौरतलब है कि जर्मन अदालत ने एक मामले को लेकर फेसबुक कंपनी को आदेश दिया कि वो मृत बेटी के अकाउंट को चलाने की इजाजत उसकी मां को दे। इसके लिए मां को लंबा संघर्ष करना पड़ा। इस फैसले से साफ हो गया है कि अगर नाबालिग फेसबुक अकाउंट होल्‍डर की मृत्‍यु हो जाती है, तो उसके अकाउंट का उत्तराधिकार माता-पिता को मिल सकता है।
फेसबुक ने अनुमति देने से मना कर दिया

मामले के तहत के जर्मन माता-पिता अपनी बेटी की मौत के बाद उसके फेसबुक अकाउंट को लॉग इन करने की अनुमति मांग रहे थे। लेकिन फेसबुक ने अनुमति देने से मना कर दिया। ऐसे में माता-पिता ने कोर्ट का सहारा लिया। अभिभावकों के अनुसार उनकी बेटी की 2012 में संदेहास्‍पद स्थिति में मौत हो गई थी। वे फेसबुक अकाउंट के जरिए इस मौत से जुड़े कुछ सबूतों को खोज रहीं थीं, लेकिन फेसबुक ने अपनी पॉलिसी का हवाला देते हुए अकाउंट को लॉग इन करने की इजाजत नहीं दी।
मरने वालों के लिए मेमोराइज अकाउंट

अभी तक फेसबुक मरने वाले यक्ति के खाते को सहमति से मिटा सकता है या इसे मेमोराइज अकाउंट बना सकता है। इस अकाउंट पर मरने वाले के दोस्त और उसके परिवार वाले उसे श्रद्दांजलि दे सकते हैं। इसकी मदद अभिभावक और दोस्त उसे याद करने के लिए पुरानी फोटो का सहारा ले सकते हैं। इस तरह से मरने वाले का अकाउंट पूरी से तरह सुरक्षित रहता है। जिसे समय समय पर सम्मान देने लिए शेयर किया जा सकता है।
संपत्ति पर माता-पिता का हक

जर्मन कोर्ट के सामने ये सवाल था कि डिजिटल खातों को भी अनुरूप संपत्ति के दायरे में रखा जाए या नहीं। हालांकि इससे पहले 2015 में बर्लिन की एक अदालत ने माता-पिता के हक में फैसला सुनाया था,जिसे फेसबुक ने उच्‍च अदालत में चुनौती दी थी। स्‍थानीय अदालत ने फैसला सुनाते कहा कि डिजिटल संपत्तियों के साथ समान रुख नहीं अपनाया जाए तो यह विरोधाभास पैदा होगा कि चिट्ठी-पत्र,डायरी,सामग्री के लिहाज से स्वतंत्र है,लेकिन ईमेल और फेसबुक नहीं। अदालत ने कहा था कि बेटी की निजी संपत्ति पर माता-पिता की पहुंच से निजी अधिकार का उल्लघंन नहीं होता।
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