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जर्मन माता-पिता अपनी बेटी की मौत के बाद उसके फेसबुक अकाउंट को लॉग इन करने की लंबे समय से अनुमति मांग रहे थे, लेकिन फेसबुक ने अनुमति देने से मना कर दिया। ऐसे में माता-पिता ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। माता-पिता का कहना था कि उनकी बेटी की 2012 में रहस्यमय हालातों में मौत हो गई थी। वे फेसबुक अकाउंट के जरिए इस मौत से जुड़े कुछ सवालों के जवाब ढूंढना चाह रहे हैं, लेकिन फेसबुक ने अपनी प्राइवेसी पॉलिसी का हवाला देकर अकाउंट का लॉग इन करने की इनकार कर दिया।
जर्मन माता-पिता अपनी बेटी की मौत के बाद उसके फेसबुक अकाउंट को लॉग इन करने की लंबे समय से अनुमति मांग रहे थे, लेकिन फेसबुक ने अनुमति देने से मना कर दिया। ऐसे में माता-पिता ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। माता-पिता का कहना था कि उनकी बेटी की 2012 में रहस्यमय हालातों में मौत हो गई थी। वे फेसबुक अकाउंट के जरिए इस मौत से जुड़े कुछ सवालों के जवाब ढूंढना चाह रहे हैं, लेकिन फेसबुक ने अपनी प्राइवेसी पॉलिसी का हवाला देकर अकाउंट का लॉग इन करने की इनकार कर दिया।
कोर्ट के बाहर समझौता का मौका
अपनी मृत बेटी के फेसबुक अकाउंट का अधिकार मांग रहे माता-पिता और फेसबुक कंपनी को बर्लिन की कोर्ट ने बाहर रहकर समझौता करने का भी मौका दिया, लेकिन इस पर भी बात बन नहीं पाई। आपको बता दें कि लड़की मौत 5 साल पहले बर्लिन के एक सब-वे स्टेशन पर ट्रेन के सामने आ जाने से हुई थी। लेकिन अब तक यह साफ नहीं हो पाया है कि ये कोई दुर्घटना थी या खुदकशी। बर्लिन की एक स्थानीय अदालत ने साल 2015 में माता-पिता के पक्ष में फैसला सुनाया था, जिसे फेसबुक ने उच्च अदालत में चुनौती दी थी।
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अदालत ने दिया ये तर्क
अदालत ने जब इस बारे में फैसला सुनाया तो उन्होंने साफ तौर पर तर्क दिया कि एनालॉग और डिजिटल संपत्तियों के साथ अलग-अलग फैसला नहीं हो सकता है। जबकि मौत के बाद डायरी, चिट्टी-पत्र जैसी चीजों पर घर वालों का ही अधिकार होता है तो डिजिटल सामग्री पर भी उनका समान अधिकार होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि बेटी की निजी संपत्ति पर माता-पिता की पहुंच से उसके निजी अधिकार का उल्लंघन नहीं होता। अभिभावकों को ये जानने का पूरा हर है कि नाबालिग बच्चे ऑनलाइन क्या कर रहे हैं।
अदालत ने दिया ये तर्क
अदालत ने जब इस बारे में फैसला सुनाया तो उन्होंने साफ तौर पर तर्क दिया कि एनालॉग और डिजिटल संपत्तियों के साथ अलग-अलग फैसला नहीं हो सकता है। जबकि मौत के बाद डायरी, चिट्टी-पत्र जैसी चीजों पर घर वालों का ही अधिकार होता है तो डिजिटल सामग्री पर भी उनका समान अधिकार होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि बेटी की निजी संपत्ति पर माता-पिता की पहुंच से उसके निजी अधिकार का उल्लंघन नहीं होता। अभिभावकों को ये जानने का पूरा हर है कि नाबालिग बच्चे ऑनलाइन क्या कर रहे हैं।