भारत ने शुक्रवार को मानवाधिकार परिषद के 39 वें सत्र में चीन के बेल्ट और रोड पहल (बीआरआई) पर चिंता जताई। भारत ने कहा कि ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’ (सीपीईसी) परियोजना संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर भारत की मुख्य चिंताओं को अनदेखा करती है। इसके अलावा भारत ने इस अंतरराष्ट्रीय फोरम में पाकिस्तान के सिंध प्रांत में बन रहे बांध पर भी आपत्ति जताई है।
एनएचआरसी में भारतीय राजदूत वीरेंद्र पॉल ने 39वीं बैठक के दौरान विकास के अधिकार पर कार्यकारी समूह की रिपोर्ट पर दिए गए अपने बयान में जोर देकर कहा कि भारत विकास के अधिकार को समझता है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय बिरादरी सीपीईसी पर भारत के रुख से अच्छे तरीके से परिचित है। उन्होंने कहा, “कोई भी देश ऐसे प्रॉजेक्ट को स्वीकार नहीं कर सकता तो उसकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की आशंकाओं पर गौर नहीं करता।’ बता दें कि भारत चीन की बेल्ट ऐंड रोड परियोजना के तहत बनाए जा रहे सीपीईसी का विरोध कर रहा है।
भारत ने चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर पर निशाना साधते हुए कहा कि यह प्रोजेक्ट पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और अक्साई चीन जैसे इलाकों से होकर गुजरता है। भारत इस प्रॉजेक्ट का विरोध करता है क्योंकि यह उसके उन इलाकों से होकर गुजरता है जो भारत के अभिन्न अंग हैं। इस प्रोजेक्ट को शुरू कर चीन और पाकिस्तान ने भारतीय की सम्प्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर हमला किया है।
भारतीय राजदूत वीरेंद्र पॉल ने कहा कि भारत भौतिक कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ अपनी इच्छा साझा करता है और मानता है कि न्यायसंगत और संतुलित तरीके से सभी को आर्थिक विकास का लाभ उठाना चाहिए। लेकिन कोई भी देश ऐसी परियोजना को स्वीकार नहीं कर सकता है जो संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर उसकी मूल चिंताओं को अनदेखा करती है।
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पाकिस्तानी डैम पर आपत्तिभारत ने गिलगित बाल्टिस्तान में बनाए जा रहे दियामर-बाशा बांध पर भी सवाल उठाए हैं। भारत ने कहा कि वह मानवाधिकार परिषद का ध्यान इस ओर दिलाना चाहता है कि इस बांध के निर्माण से पाकिस्तान सिंध के लोगों के मानवाधिकारों का भर्ती उल्लंघन कर रहा है। भारत ने कहा कि चौतरफ विरोध के बाद पाकिस्तान के इस बांध को बनाने की जिद उसकी नियत पर सवाल खड़े करती है। पीओके के लोग भी इसका विरोध कर रहे हैं। भारत ने अपील की कि मानवाधिकार परिषद अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कर पाकिस्तान को इस पर्यावरण विरोधी कदम उठाने से रोके जिसके वजह से लाखों लोगों के नैसर्गिक अधिकारों का हनन हो रहा है।