मुश्किल हुआ अमरीका का सपना भारतीयों के लिए अमेरिका की नागरिकता हासिल करना पिछले एक दशक में मुश्किल हो गया है। ताजा जानकारियों के अनुसार अमेरिका अपने एच1 बी वीजा नियमों में फिर से बदलाव कर सकता है। इन नियमों के बदलाव से अब अमेरिका में भारतीय इंजीनियरों की जरूरत कम हो जाएगी। गौर तलब है कि साल 1990 के बाद वैश्विक परिस्थियों में आये बदलाव के साथचीन और मैक्सिको के बाद भारत ऐसा तीसरा सबसे बड़ा देश था जहाँ के निवासियों को अमेरिका की नागरिकता मिल जाया करती थी।
अमरीका में बसना औसत भारतीय के लिए एक बड़ा सपना है। आंकड़ों के मुताबिक पिछले 30 वर्षों में अमेरिका इस मामले में 2008 में सबसे ज्यादा उदार रहा है। इस साल 65,971 भारतीयों को अमेरिका की नागरिकता मिली थी। 1995 से 2000 के बीच हर साल लगभग 1,20,000 कुशल वर्कर अमेरिका जाते थे। इस दशक में यह आंकड़ा 2014 में सबसे कम 37,854 था। वहीं साल 2017 में अमेरिका ने 49,601 भारतीयों को नागरिकता दी है। 2014 से 2017 के बीच इमिग्रेशन में भी काफी कमी आई है। इ जानकारों का कहना है कि H-१ब वीसा मामले को देखते हुए अब कंपनियां काफी सावधानी बरत रही हैं। ऐसे में अमेरिका को अब भारतीय टेक्नोक्रेटस की जरूरत कम हो गई है।
अमेरिका में घटी भारतीय कामगारों की मांग अमरीका में अधिकतर भारतीयों को उच्च कौशल के आधार पर वर्क वीजा परमिट मिलता था लेकिन इमिग्रेशन में कमी आने के बाद अमेरिका में भारतीय इंजिनियरों और कुशल प्रबंधकों की मांग घट गई और वहां की कंपनियां अपने देश के लोगों को तवज्जो देने लगीं हैं । ट्रम्प के सत्ता में आने के बाद स्थानीय लोगों को नौकरियों में रखने पर जोर दिया जा रहा है । एक इमिग्रेशन काउन्सिल मार्क डेवीस ने बताया, ‘जब अमेरिका की इमिग्रेशन पॉलिसी ने उदारता दिखाई तो बड़ी संख्या में भारतीय जाने लगे। इसके बाद उनके परिवार के लोगों ने भी ग्रीन कार्ड के लिए अप्लाइ किया लेकिन उनका वेटिंग पीरियड बढ़ गया।’ अमरीका में सबसे ज्यादा आईटी सेक्टर ने भारतीयों को नौकरियां दी थीं लेकिन ट्रंप की नीति के अनुसार विदेशियों को मिलने वाली नौकरियों में भारी कमी आ गई है।