हवा का तापमान सामान्य से 1.9 डिग्री सेल्सियस ऊपर
नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) के वार्षिक आर्कटिक रिपोर्ट कार्ड में यह जानकारी सामने आई है। इसमें कहा गया है कि 2019 में आर्कटिक में औसत हवा का तापमान सामान्य से 1.9 डिग्री सेल्सियस ऊपर दर्ज किया गया है। यह तापमान वर्ष 1900 के बाद से सबसे ज्यादा गर्म है। 2019 में इस उच्च तापमान से संकेत मिल रहे हैं कि अब के समय में आर्कटिक वार्मिंग रुकने की कोई गुंजाइश नहीं है।
आर्कटिक में वार्मिंग का स्तर वैश्विक औसत से दोगुना
रिपोर्ट में कहा गया है कि 1990 दशक के मध्य से, आर्कटिक में वार्मिंग का स्तर वैश्विक औसत से दोगुना है। यह सिलसिला 2014 के बाद से हर साल, आर्कटिक 1900-2014 के बीच किसी भी वर्ष की तुलना में अधिक गर्म रहा है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि असाधारण रूप से उच्च हवा का तापमान, सिकुड़ते हुए समुद्री बर्फ,मछली की प्रजातियों के वितरण में बदलाव, ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर का रिकॉर्ड पिघलना जैसे कई प्रभावों का कारक है।
आर्कटिक पर अध्ययन से हुआ खुलासा
कई वर्षों से, जलवायु वैज्ञानिकों ने आर्कटिक पर अध्ययन किया है और उस पर इंसानों द्वारा किए जा रहे गैसों के उत्सर्जन के प्रभावों को समझने पर करीब से नजर बनाई है। आपको बता दें कि आर्कटिक वैश्विक जलवायु के लिए एक बेलवेस्टर है। इसमें आए छोटे बदलावों के बहुत बड़े और गंभीर परिणाम हो सकते हैं। एक गर्म आर्कटिक का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव क्षेत्र की समुद्री बर्फ पर पड़ता है।
समुद्री बर्फ की मोटाई में आए बदलाव
आमतौर पर आर्कटिक में समुद्री बर्फ का कवरेज गर्मियों के महीनों में बर्फ पिघलने के बाद सितंबर में अपने वार्षिक न्यूनतम स्तर पर पहुंच जाता है। लेकिन इस वर्ष, गर्मियों में पिघल के बाद बर्फ का शेष क्षेत्र 2007 और 2016 के साथ दूसरे सबसे कम रिकॉर्ड के लिए बंधा हुआ था। उपग्रह रिकॉर्ड में 13 सबसे कम समुद्री बर्फ फैली हुई है जो अब पिछले 13 वर्षों में हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, आमतौर पर ठंड के महीनों के दौरान समुद्री बर्फ फिर से जम जाती है, लेकिन 2018-2019 की समुद्री बर्फ कवरेज की अधिकतम सीमा भी सामान्य से बहुत कम थी। इसके अलावा हाल के वर्षों में समुद्री बर्फ की मोटाई में अन्य महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं, जो 2019 में जारी रहा। आर्कटिक की बर्फ हाल ही में बहुत पतली हो गई है। मार्च 2019 में, मुश्किल से 1% से अधिक समुद्री बर्फ में मोटी बर्फ थी जो पिछले वर्ष से जमी हुई थी।
ध्रुवीय भालू जैसे जानवरों पर काफी बुरा असर
लुप्त हो रही समुद्री बर्फ का ध्रुवीय भालू जैसे जानवरों पर काफी बुरा असर पड़ता है। यही नहीं, इसका असर मनुष्यों सहित अन्य प्रजातियों पर भी पड़ता है। कुछ खास तरह की मछली प्रजातियों का मुख्य डेरा कहे जाने वाले बेरिंग सागर ने पिछले दो सर्दियों में रिकॉर्ड कम समुद्री बर्फ देखी है और इसके कारण उनका पूरा इकोसिस्टम बदल रहा है।