असल में पाकिस्तान और चीन के बीच संबंध शुरू से इतने अच्छे नहीं रहे। चीन की विस्तारवादी नीति से पाकिस्तान बहुत परेशान रहता था। मगर वह पाकिस्तान ही था, जिसने सोशलिस्ट क्रांति के बाद चीन के गणतंत्र को मान्यता दी और ऐसा करने वाला पाकिस्तान दुनिया का तीसरा देश था, जबकि पहला मुस्लिम देश भी। पाकिस्तान ने चीन के गणतांत्र की मान्यता का ऐलान 4 जनवरी 1950 को किया था। इसके करीब एक साल बाद 21 मई 1951 को दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध स्थापित हुए। इसी कड़ी में पाकिस्तान ने मेजर जनरल आगा मोहम्मद रजा को चीन में अपना राजदूत तैनात कर दिया। हालांकि, दोनों के रिश्तों में आज जैसी गर्मजोशी तब नहीं थी।
पाकिस्तान और चीन के संबंधों पर एक ब्रिटिश जर्नलिस्ट एंडर यू स्माल ने अपनी किताब द चाइना पाकिस्तान एक्स-एशियाज न्यू जियो पॉलिटिक्स में इस बात का उल्लेख किया है। एंडर के मुताबिक, चीन के सर्वोच्च नेता माओत्से तुंग ने पाकिस्तान के राजदूत के पदभार ग्रहण के दस्तावेज को स्वीकार करते समय कोई खास खुशी जाहिर नहीं की। तब माओत्से तुंग ने कहा था, मैं ब्रिटेन और आयरलैंड औपनिवेशिक देशों की ओर से इन दस्तावेजों को प्राप्त करते हुए खुशी महसूस कर रहा हंू। माओत्से तुंग की इस प्रतिक्रिया में कहीं भी पाकिस्तान का नाम नहीं था, जबकि राजदूत पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
हालांकि, 1962 में भारत और चीन के बीच हुए युद्ध के बाद तीनों देशों के आपसी समीकरण बदल गए। चीन और पाकिस्तान सीमा मुद्दे को सुलझाने के बाद दोनों देशों के संबंध बेहतर होने लगे। मगर इससे पहले तक पाकिस्तान का असली दोस्त अमरीका हुआ करता था।
वैसे विशेषज्ञों का कहना है कि चीन और पाकिस्तान की दोस्ती बिल्कुल बेमेल है। दोनों देश एकदूसरे से बिल्कुल अलग हैं। पाकिस्तान इस्लामिक देश है, जबकि चीन धर्म को नहीं मानता। चीन चुनी हुई सरकार में विश्वास रखता है, जबकि पाकिस्तान सैन्य शासन में। चीन उभरती हुई महाशक्ति है, तो पाकिस्तान कर्ज में डूबा हुआ भिखारी देश। चीन को पाकिस्तान की वजह से कई बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कटघरे में खड़ा होना पड़ा है। हालांकि, यह भी सच है कि दोनों देशों के बीच दोस्ती में अपने-अपने स्वार्थ हैं। इसके अलावा, दोनों की दोस्ती की बड़ी वजह जो है वह यह कि भारत दोनों का दुश्मन नंबर एक देश है।