scriptअर्श से फर्श पर…मुगाबे का ऐसा उतार-चढ़ाव भरा रहा सफर | Robert Mugabe Resigns as Zimbabwes President | Patrika News

अर्श से फर्श पर…मुगाबे का ऐसा उतार-चढ़ाव भरा रहा सफर

locationनई दिल्लीPublished: Nov 22, 2017 12:23:30 pm

Submitted by:

Ravi Gupta

जिम्बाब्वे की राजधानी हरारे में हुई सत्तारूढ़ जेडएएनयू-पीएफ पार्टी की आपात बैठक में राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे को पार्टी प्रमुख पद से हटा दिया

Robert Mugabe

हरारे। जिम्बाब्वे की राजधानी हरारे में रविवार को हुई सत्तारूढ़ जेडएएनयू-पीएफ पार्टी की आपात बैठक में राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे को पार्टी प्रमुख पद से हटा दिया गया। उनके स्थान पर पूर्व उप-राष्ट्रपति एमर्सन नांगाग्वा को पार्टी अध्यक्ष बनाया गया है। जिम्बाब्वे की सेना ने बुधवार को देश पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। हालांकि, सेना के शीर्ष अधिकारियों ने तख्तापलट से इन्कार किया है।

दूसरी तरफ, राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे ने कहा कि वह नजरबंद हैं। सत्ता पर मुगाबे की दशकों पुरानी पकड़ छूटती दिख रही है। उन्हें पार्टी से हटा दिया गया है, लेकिन वह अभी भी सत्ता छोड़ने को तैयार नहीं हैं। मुगाबे दुनिया के सबसे उम्रदराज राष्ट्राध्यक्ष में से थे, लेकिन उनके खराब होते स्वास्थ्य की वजह से उनके उत्तराधिकार की लड़ाई शुरू हो गई है। मुगाबे के शासन की लंबे समय से समर्थक रही सेना और 93 साल के नेता मुगाबे के बीच तनाव हालिया दिनों में सार्वजनिक हो गया है। आइए जानते हैं मुगाबे के राजनीतिक सफर के बारे में…
Robert Mugabe

 

1980 से है सत्ता पर कब्ज़ा-
मुगाबे ने देश को ब्रिटिश हुकूमत से मुक्त कराने के लिए आंदोलन का नेतृत्व किया था। साल 1980 में आजादी के बाद से ही मुगाबे बीते 37 सालों से सत्ता संभाले हुए थे। वह दुनिया के सबसे उम्रदराज व्यक्ति हैं जो देश का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। 2013 में मुगाबे की नेट वर्थ करीब 10 मिलियन डॉलर थी। वे पहली बार 1960 में जिम्बाब्वे अफ्रीकन नेशनल यूनियन पार्टी के नेता के तौर पर प्रसिद्ध हुए थे। तब रोडेशिया में अंग्रेजों का शासन था। जिसके खिलाफ नेशनल यूनियन ने 1964 से लेकर 1971 तक छापामार युद्ध छेड़ रखा था। मुगाबे को प्रभावशाली वक्ता, विवादों में घिरा रहने वाला व्यक्ति एवं लोगों को ध्रुवीकृत करने में माहिर समझा जाने वाला राजनीतिज्ञ समझा जाता रहा है। स्वतंत्रता युद्ध के बाद वे अफ्रीकियों के नायक के तौर पर उभर कर सामने आए थे।


टीचर से लेकर आजादी के नायक तक का सफ़र –
मुगाबे 1970 के दशक के अंत तक कैथोलिक स्कूल में शिक्षक थे। उस दौर में राष्ट्रवादी आंदोलन के दो मुख्य विंग्स में से एक जिम्बाब्वे अफ्रीकी नेशनल यूनियन का नेतृत्व उन्होंने किया। जब जिम्बाब्वे को स्वतंत्रता मिली, तो मुगाबे 1980 में देश के पहले लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित राष्ट्रपति बने। शुरुआती शासन के दौरान लोगों ने उनका स्वागत किया क्योंकि उन्होंने युद्ध से आजादी दिलाई थी। लोग नए सिस्टम में काम करना चाहते थे।
भ्रष्टाचार पर रोक नहीं –

लेकिन, बाद के समय में मुगाबे की लोकप्रियता कम होती गई। जैसे 1990 के दशक में श्वेत लोगों से जमीन वापस लेकर उन्होंने जिम्बाब्वे के लोगों को देना शुरू कर दिया। मगर, यह सुनिश्चित किया कि ज्यादातर जमीन उनके राजनीतिक सहयोगियों को मिले। हालांकि, चुनावों में गड़बड़ी और राजनीतिक विरोधियों को काबू में रखकर वह इतने सालों तक शासन पर पकड़ बनाए रख सके।

और बर्बाद होता गया देश-
हर चुनाव में लोगों की आजादी कम होती गई और मुगाबे लगातार राष्ट्रपति पद पर काबिज बने रहे। साल 2008 के चुनाव में वह हार गए थे, लेकिन उन्होंने स्थिती बदल दी और गड़बड़ी कर फिर शासन की कमान अपने हाथ में ले ली।

ऐसे बना फिर ऐसे गिरा देश –
आजादी के बाद जिम्बाब्वे औपनिवेशिक अफ्रीका के लिए आदर्श उदाहरण था। चारों तरफ से अन्य देशों के घिरे जिम्बाब्वे में कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं थे। मुगाबे की सरकार ने एक आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था का निर्माण किया। इसके कृषि क्षेत्र ने देश को “अफ्रीका ब्रेडबैस्केट” (रोटी का कटोरा) का उपनाम दिलाया। सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली ने महाद्वीप में साक्षरता के उच्चतम स्तर तक पहुंचाया। मगर, आज जिम्बाब्वे की अपनी मुद्रा नहीं है। पश्चिमी देशों के प्रतिबंध काफी है। अर्थव्यवस्था चरमरा गई है, लोगों के पास रोजगार नहीं है।

पत्नी की वजह से बढ़ा विवाद-
नवंबर 2017 की शुरुआत में मुगाबे ने अपनी पत्नी को शक्ति देने के लिए उप-राष्ट्रपति को पद से हटा दिया। इसके तुरंत बाद मुगाबे के खिलाफ फैला असंतोष व्यापक हो गया।

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