हालांकि यह प्रक्रिया इतनी आसान दिखाई नहीं दे रहा है और माना जा रहा है कि संविधान संशोधन को पारित कराना पुतिन के लिए आसान नहीं होगा। आपको बता दें कि पुतिन पर पिछले चुनाव में धांधली के आरोप लगे थे, लेकिन वे भारी बहुमत के साथ जीतकर आए थे।
आखिर क्यों कोरोना से मरने वालों की संख्या छिपा रहा रूस ? संक्रमण के मामले में दूसरे नंबर पर पहुंचा
व्लादिमीर पुतिन की जीत हमेशा से काफी प्रभावशाली रहा है। वर्ष 2000 में पुतिन राष्ट्रपति पद के लिए 53 फीसद वोटों से जीतकर आए थे, जबकि 2004 में 71 फीसद, 2012 में 63 फीसद और 2018 में 76.7 फीसद वोटों से जीते थे।
इससे पहले भी संविधान संशोधन कर चुके हैं पुतिन
आपको बता दें कि ऐसा पहला मौका नहीं है, जब संविधान में संशोधन किया जा रहा है। इससे पहले वे 2008 में दूसरे कार्यकाल खत्म करने के बाद पुतिन के उत्तराधिकारी और दिमित्री मेदवेदेव ने राष्ट्रपति शासन का कार्यकाल चार से बढ़ाकर छह साल कर दिया था।
मालूम हो कि पुतिन इस साल पुतिन 68 साल के हो जाएंगे जो कि एक रूसी व्यक्ति का औसतन जीवन काल है। पुतिन का जन्म 1952 में हुआ है ऐसे में वे 2036 में 84 साल के हो जाएंगे। रूस में लेनिन से लेकर येल्तसिन तक कोई भी नेता अपना 80वां जन्मदिन नहीं देख पाया है। लिहाजा पुतिन अपने कार्यकाल को इतना बढ़ाना चाहते हैं कि वे आजीवन राष्ट्रपति पद पर बने रहें।
बता दें कि कोरोना को लेकर पुतिन की छवि थोड़ी धुमिल हुई है। चूंकि कोरोना वायरस के संक्रमण से लड़ने में रूस नाकाम साबित रहा है। इतना ही नहीं, पुतिन पर कोरोना मरीजों और उससे मरने वालों की संख्या के आंकड़े छुपाने का भी आरोप लगा है।
अभी तक के आंकड़ों के अनुसार, रूस में कोरोना वायरस की वजह से 5,215 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 43.2 लाख लोग संक्रमित हैं।