इन कोशिकाओं पर हाइड्रोजेल की एक बहुत ही पतली सी झिल्ली होती है और ये कोशिकाएं पॉलिमर धागे की सहायता से एक दूसरे से जुड़ी होती है। जब ये कोशिकाएं इस्तेमाल करने लायक नहीं होती है तो उन्हें हटाना जरूरी होता है नहीं तो ये बाद में ट्यूमर का आकार ले सकती है। कॉर्नल विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर मिनग्लिन का इस बारे में कहना है कि इंसान अपने शरीर में ऐसा कुछ नहीं रखना चाहता जिसका कि वो इस्तेमाल नहीं कर सकें। ये कोशिकाएं जब मर जाती है तो उन्हें बाहर निकालना बहुत जरूरी होता है। हमारी पद्धति ये काम बहुत ही आसानी से कर पाएगी। प्रोफेसर का ये भी कहना है कि उन्हें इस कार्य की प्रेरणा मकड़ी के जाल पर स्थित पानी की बूंदों से मिला। खैर हमें तो बस इस बात का ही इंतज़ार रहेगा कि ये प्रकिया जल्द से जल्द मरीजों के लिए उपलब्ध हो और उन्हें इस रोग से छूटकारा मिलें।