एक दिन किसी शख्स की नजर उस पर पड़ी और उसने अब्दुल की एक तस्वीर ले ली। उस अज्ञात शख्स ने उस फोटो को फेसबुक पर शेयर कर दिया। नार्वे के एक पत्रकार गिसोर सिमोनारसन की नजर इस वायरल हो रहे तस्वीर पर पड़ी।
इस फोटो को देखने के तुरंत बाद गिसर ने ट्विटर पर @buy_pens नाम से एक अकांउट बनाया। इसके ही गिसर ने अब्दुल के फंडिंग के लिए लोगों से अपील की। एक लाचार पिता का अपनी बेटी को कंधे पर लेकर सड़कों पर घूम-घूमकर पेन बेचने की इस तस्वीर को जिसने भी देखा उसी का दिल पसीज गया।
गिसोर ने पांच हजार डॉलर का लक्ष्य बनाया लेकिन अब्दुल को 1 लाख नब्बे हजार डॉलर का सहयोग मिला जो कि उम्मीद से कई गुना ज्यादा था। आज अब्दुल करोड़ों का मालिक है और अपने जैसे तमाम शरणार्थियों को उसने अपने यहां नौकरी पर रखकर उनकी मदद कर रहा है। शायद इस तस्वीर को लेने वाले उस इंसान ने भी ऐसा नहीं सोचा होगा कि उसके इस एक कार्य से तमाम लोगों की जिंदगी सुधर जाएगी। इस वाक्ये को देखकर पता चलता है कि आज भी नफरत भरी इस दुनिया में लोगों के दिल में दया और परोपकार की भावना मौजुद है।