भारतीय मूल के एसपीएस ओबेरॉय की। वे अबतक अरब में फंसे ऐसे 80 से ज्यादा युवाओं को बचा चुके हैं, जिनमें 50 से ज्यादा भारतीय शामिल हैं, जो सऊदी अरब में काम की तलाश में गए और हत्या या अन्य अपराधों में फंसा दिए गए। ओबेरॉय इनके लिए चुकाते हैं ब्लड मनी और उनके मन नहीं रहता कोई मलाल।
सऊदी के शरिया कानून के अनुसार हत्या करने के बाद उसकी सजा से बचने के लिए पीड़ित परिवार से सौदेबाजी की जा सकती है। इसमें दी जाने वाली रकम को ‘दिया’ या ब्ल्ड मनी कहा जाता है। हत्या के दोषी और पीड़ित परिवार के बीच सुलह हो जाए और अगर पीड़ित परिवार माफी देने को राजी हो जाए तो फांसी माफ करने के लिए अदालत में अपील की जा सकती है। ऐसे मामलों में फंसे बेकसूरों को बचाने के लिए ओबरॉय मदद करते हैं और उन्हें इस मुश्किल से निजाद दिलाते हैं।
आपको बता दें भारत के पंजाब से कुछ युवक अबू धाबी काम की तलाश में आए इस लड़कों को 2015 में एक झड़प के दौरान एक पाकिस्तानी युवक की हत्या का दोषी पाया गया। इसी कारण इन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी। जिसके बाद 2016 में अबू धाबी की अल अइन अदालत ने वहां मौत की सजा पाने वाले 10 भारतीय युवकों की सजा माफ करने के बदले ब्लड मनी जमा करवाने की मंज़ूरी दी थी। इस ब्ल्ड मनी को चुकाया एसपीएस ओबेरॉया ने जो करीब 6.5 करोड़ रुपए थी। उन लोगों ने उसके बाद उन्हें मसीहा का दर्जा दे दिया।
इनमें जिन युवाओं को सजा दी गई थी वो आर्थिक तौर पर कमजोर थे। यहां तक कि वो अपने लिए वक़ील भी नहीं कर सकते थे तो ब्लड मनी देना बहुत दूर की बात। सरबत का भला चैरिटी संस्था का ट्रस्ट इनकी मदद करता है। ओबेरॉय कहते हैं, अब तक हमने 88 युवकों को फांसी से बचाया है और वो सब अब अपने घर जा चुके हैं। इनमें से कई युवक पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र और हैदराबाद के थे। पांच युवक तो पाकिस्तान के थे और पांच बांगलादेश के थे।
भारतीय युवाओं की मदद के लिए ओबेरॉय औसतन 36 करोड़ रुपए सालाना खर्च कर देते हैं। ओबेरॉय ने अपने एनजीओ सरबत दा भला के माध्यम से ऐसे कई केस लड़े। 2006 से 2010 के बीच सऊदी में 123 युवकों को मौत की सजा और 40 साल तक जेल की सजा सुनाई गई थी। ये मामले शारजाह, दुबई, अबु धाबी के थे जिन्हें ओबेरॉय ने लड़ा।