लाखों रुपये हो जाते हैं खर्च गौरतलब है कि कैंसर के इलाज लिए लाखों,करोड़ों रुपए खर्च हो जाते हैं। कई लोगों के लिए कैंसर एक लाइलाज बीमारी है। यह बीमारी हजारों लोगों की जिंदगी लील चुकी है। ऐसे में जो शरीर कैंसर के आगे लाचार हो जाता है, अगर वही इस बीमारी के सामने हथियार बन जाए तो, इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता। इस साल के नोबेल विजेताओं के रिसर्च के अनुसार शरीर के इम्यून सिस्टम में कैंसर से लड़ने की क्षमता है। बस इसे बढ़ाने की जरूरत है। इस तरह कैंसर थेरपी में एक नया सिद्धांत स्थापित हुआ है। डॉ.एलिसन और होन्जो ने अलग-अलग काम करते हुए 1990 में यह सिद्ध किया था कि कैसे शरीर में मौजूद कुछ प्रोटीन इम्यून सिस्टम के टी-सेल पर ‘ब्रेक’ का काम करते हैं और उन्हें कैंसर सेल्स से लड़ने से रोकते हैं। ऐसे प्रोटीन को निष्क्रिय करके उन सेल्स की कैंसर से लड़ने की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। इस तरह हमारा शरीर खुद ही कैंसर की दवा बन सकता है।
टी-सेल के जागृत करने की जरूत
टी-सेल व्हाइट ब्लड सेल होते हैं जो संक्रामक या कैंसर कारक सेल को पहचानकर उन्हें खत्म कर सकते हैं। इसके सतह पर पंजे के आकार के रिसेप्टर्स मौजूद होते हैं जो कि बाहर से आए किसी भी सेल को पहचानकर उसे पकड़ लेते हैं। कैंसर सेल पर हमला करने से पहले टी-सेल के जागृत करने की जरूत होगी। इसके लिए एक विशेष सेल, टी सेल तक कैंसर सेल के एंटीजन को ले जाएगा। इस तरह टी-सेल कैंसर के सेल को पहचान जाएगा और उस तरह के हर सेल पर आक्रमण करके उसे खत्म कर देगा।
चेकपॉइंट टी-सेल की गतिविधियों को रोक सकते हैं
यह लड़ाई इतनी भी आसान नहीं है जितनी बताई गई है। टी-सेल पर कुछ इम्यून चेकपॉइंट्स होते हैं। ये चेकपॉइंट टी सेल की गतिविधियों को रोक सकते हैं। इससे कैंसर सेल को फायदा मिलेगा और वे बिना रुके बढ़ते जाएंगे। वैज्ञानिकों ने इसका भी तोड़ निकाला है। इसके लिए कुछ दवाएं दी जाएंगी जो कि इन चेकपॉइंट्स को ब्लॉक कर देंगी। इसके बाद टी सेल अबाध रूप से कैंसर सेल पर धावा बोल सकेगा। एक टी सेल हजारों कैंसर सेल को नष्ट कर सकता है।