पिता ने अपने दो बच्चों, रौधातुल जन्नह, 4, और आरिफ प्रतामा रंगकुटी के साथ तैर रही एक लकड़ी के बोर्ड को पकड़ा दिया। वह उस घटना से जूझते-लड़ते किसी तरह खुद को बचाने में कामियाब रहे लेकिन अंत में हुआ यह सुनामी की लहरों नें सब तबाह कर दिया था, देखते ही देखते वह परिवार अलग हो गया। दोनों बच्चे अचानक उनके माता-पिता की नज़रों से ओझिल हो गए। जैसा कि सुनामी की क्षमता कम होती गई, माता-पिता ने एडी–चोटी का जोर लगाकर अपने बच्चों की तलाश की लेकिन उनके बारे में कहीं भी कोई संकेत नहीं था। वह उन्हें सालों ढूढ़ते रहे मगर कुछ हासिल नहीं हुआ।
उनके बच्चे सूनामी के हज़ारों हताहतों की संख्या में कहीं गुम हो गए थे। एक दशक बाद माता-पिता ने अपने भाग्य को स्वीकार कर लिया और आगे बढ़ने की कोशिश में लग गए। उन्होंने किसी चमत्कार की उम्मीद नहीं की। 2014 में एक दिन, जमालिया के भाई ने स्कूल से घर जाने वाली सड़क पर एक लड़की को देखा- और उसको देखकर उसे लगा की यह चेहरा जाना पहचाना है। उसके नैन नक्श हुबहू उसकी भांजी से मिलते थे। उसने सोचा अगर रौधातुल जिंदा होती तो आज की तारीख में इसी की तरह होती लगभग 14 साल की। यह असंभव लग रहा था लेकिन वह समानताओं को अनदेखा नहीं कर सका। इसलिए उसने लड़की के बारे में पूछताछ की और जब उसे उसकी कहानी सुनाई गई तो वह चौंक गया। उसे पता चला कि लड़की 10 साल पहले सूनामी में पड़ोसी द्वीप से बह कर आ गई थी। एक मछुआरे ने उसे बचाया और उसे अपने घर ले आया, उसे मछुवारे ने 80 मील दूर से उठाया, जहां से वह अपने परिवार से अलग हो गई थी। जमालिया का भाई यह सुनकर दंग रह गया उसको इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था, लेकिन यह सारी बातें वास्तव में सच थीं।
मैं ऊपर वाले की बहुत आभारी हूं कि हमें 10 साल बाद अलग करने के बाद हमें वापस मिलाया इश्वर का हमपर करम हुआ और हम फिर मिल गए।” परिवार का कहना है कि वह रौधातुल के पालक माता-पिता के साथ करीबी रिश्ते बनाएंगे, जिन्होंने रौधातुल को बचाया था। रौधातुल का जीवन पूरा बदल गया, उनकी बेटी उन्हें वापस मिल गई, उन्हें इस बात की भी उम्मीद है की वह अपने बेटे से भी मिल जाए। इस विनाशकारी त्रासदी के एक दशक बाद, आखिरकार इस घर में आशा आ गई!