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ईरान-अमरीका परमाणु समझौता रद्द, भारत समेत दुनिया के बाकी देशों पर ये होगा असर

locationनई दिल्लीPublished: May 09, 2018 05:06:37 pm

Submitted by:

Anil Kumar

अंतरराष्ट्रीय परमाणु समझौते से अमरीका का अलग होना भारत समेत दुनिया के बाकी देशों और ऐशियाई देशों पर पर क्या असर पड़ेगा।

hassan ruhani and donald trump

नई दिल्ली। मंगलवार को दुनिया की राजनीति से एक चौंकाने वाली खबर सामने आई। सबसे ताकतवर मूल्क का ध्वज थामे अमरीका ने ईरान के साथ हुए अंतरराष्ट्रीय परमाणु समझौते को दरकिनार करते हुए उससे अलग होने का फैसला कर लिया। हालांकि अमरीका के इस निर्णय को दुनिया के कई देश सही नहीं मान रहे हैं और खुलेआम उनकी आलोचना कर रहे हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि अंतरराष्ट्रीय परमाणु समझौते से अमरीका का अलग होना भारत समेत दुनिया के बाकी देशों पर किया असर डालेगा। ऐशियाई देशों पर अमरीका के इस कदम का प्रभाव कितना पड़ेगा।

ईरान की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा बुरा प्रभाव

आपको बता दें कि अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ट्रंप के इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा है कि यह निर्णय अमरीका को उनके बाकी सहयोगी देशों से अलग कर सकता है। साथ हीं उन्होंने यह भी कहा कि इससे ईरान की अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी और पश्चिमी एशिया में तनाव बढ़ेगा। ओबामा ने कहा कि ट्रंप के इस फैसले का असर ईरान के तेल सेक्टर, विमान निर्यात, कीमती धातु का व्यापार और ईरान के सरकार के अमरिकी डॉलर खरीदने पर भी बड़ा असर पड़ेगा। आपको बता दें कि इन सबके अलावे भारत समेत दुनिया के बाकी देशों पर ट्रंप के इस निर्णय का कई रुपों में असर पड़ेगा।

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कच्चे तेल के दाम पर होगा असर

आपको बता दें कि ट्रंप के इस फैसले का असर दुनिया में कच्चे तेल के दाम पर पड़ेगा। दुनिया मे तेल के उत्पादन और निर्यात करने वाले ओपेक (OPEC) देशों में ईरान तीसरे नंबर पर है। सबसे खास बात यह है कि एशियाई देशों में ईरान सबसे बड़ा ते निर्यातक देश है। भारत की नजर से देखें तो यब बहुत ही गंभीर निर्णय है, क्योंकि भारत में सबसे ज्यादा तेल इराक एवं सऊदी के बाद ईरान से आता है और भारत अभी अपने आयात को बढ़ाने पर रणनीति बना रहा है। बता दें कि हाल ही जब ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी भारत दौरे पर दिल्ली पहुंचे थे तो भारत ने उनसे तेल आयात बढ़ाने का वादा किया था। इस समझौते के बाद समझा जा रहा है कि 2018-19 से ईरान और भारत के बीच तेल कारोबार दोगुणा हो जाएगा। फिलहाल भारत ईरान से प्रतिदिन 2,05,000 बैरल तेल आयात करता है। जो कि अगले वित्त वर्ष से 3,96,000 बैरल प्रतिदिन होने की संभावना है। गौरतलब है कि वर्तमान समय में तेल की कीमत 70 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई है। पिछले चार वर्षों में यह सबसे ज्यादा है। अब अमरीका का ईरान के साथ अंतरराष्ट्रीय परमाणु समझौते से अलग होने पर यह आशंका बढ़ गई है कि कच्चे तेल के दामों में अप्रत्याशित रूप से बढ़ोतरी होगी।

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भारत और अमरीका के संबंधों पर प्रभाव

अमरीका का ईरान के साथ अंतरराष्ट्रीय परमाणु समझौते से अलग होना भारत और अमरीका के संबंधों पर भी असर पड़ सकता है। भारत हमेशा से यह मानता रहा है कि अंतरराष्ट्रीय नियमोें का पालन होना चाहिए। लेकिन अब अमरीका के इस निर्णय को धोखा देने वाली दृष्टि से देखा जा रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि ट्रंप के इस निर्णय के बाद अंतरराष्ट्रीय समझौतों (यूएन क्लाइमेट चेंज समझौता और ट्रांस पैसिफिक समझौता) को लेकर चिंताएं बढ़ गई है।

INSTC पर गहराया संकट के बादल

आपको बता दें कि ट्रंप के इस निर्णय ने अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) पर संकट गहरा गया है। क्योंकि INSTC भारत को ईरान के रास्ते रूस और यूरोप को जोड़ने वाली परियोजना है। बता दें कि 2002 में मंजूरी मिलने के बाद से ही भारत इस परियोजना का हिस्सा रहा है। महत्वपूर्ण बात यह है कि 2015 में एक समझौते के तहत ईरान से प्रतिबंध हटा लिया गया था जिसके बाद से इस परियोजना को गति मिली थी। लेकिन अब ट्रंप के इस निर्णय से एक बार फिर से इस परियोजना को बड़ा झटका लगने की संभावना है।

भारत की नजर से चाबहार पर असर

बता दें कि चाबहार दक्षिण-पूर्व ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थि‍त है। भारत का मकसद पाकिस्तान को बाईपास करते हुए अफगानिस्तान तक अपना व्यापार को बढ़ाना है। लेकिन अब इस निर्णय के बाद से संकट उत्पन हो सकता है। क्योंकि भारत इस बंदरगाह के लिए अब तक 85 मिलियन डॉलर निवेश कर चुका है और अभी उसकी योजना करीब 500 मिलियन डॉलर के इन्वेस्टमेंट की है। लेकिन अमरीका का ईरान पर सख्त रवैया कहीं भारत के चाबहार निवेश को महंगा न कर दे।

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शंघाई सहयोग संगठन पर असर

आपको बता दें कि शंघाई सहयोग संगठन की आधिकारिक तौर पर शुरुआत अगले महीने चीन में होगी। भारत को इसकी पूर्णकालिक सदस्यता मिल चुकी है और अब ईरान को लेकर विचार किया जा रहा है। यदि ईरान इस समूह में शामिल हो जाता है तो अमरिकी विरोध वाले ताकतों का यह संगठन बन जाएगा। वहीं भारत लगातार पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंध को मजबूत करने पर जोर दे रहे हैंं। लेकिन शंघाई सहयोग संगठन में शामिल होने के कारण भारत को नुकसान भी झेलना पड़ सकता है। क्योंकि ऐसा समझा जा रहा है कि रुस और चीन की अगुवाई में शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना अमरिका के बढ़त प्रभाव को रोकने के लिए किया गया है।

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