प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से दुनिया का नेतृत्व करने वाला अमरीका आज स्वयं ही आंतरिक क्लेश का शिकार हो गया है। संसद पर हमला करने वाली 6 जनवरी की घटना से तो विभाजित अमरीका का डरावना चेहरा साफ नजर आ रहा है। जाति-धर्म व रंगभेद से ऊपर उठकर काम करने वाले बाइडन के सामने लोकतांत्रिक मूल्यों को जिंदा रखने के साथ ही पारिवारिक स्वास्थ्य, कोविड पर नियंत्रण, रोजगार उपलब्ध करवाना, पुलिस अत्याचार पर अंकुश तथा अर्थव्यवस्था को गति देने जैसी घरेलू चुनौतियां हैं तो ईरान, चीन, उ. कोरिया आदि देश बाहरी चुनौती बन कर खड़े हैं।
कमला हैरिस भी बाइडन कार्यकाल में उम्मीद से ज्यादा महत्त्वपूर्ण भूमिका में नजर आ सकती हैं। हैरिस को उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनना एक बहुत ही कूटनीतिक फैसला था, जिसका एक बड़ा कारण उनका आफ्रो-अमेरिकन और भारतीय मूल का होना था। हैरिस से बाइडन को बड़ी मदद मिलेगी। अश्वेतों का विश्वास वापस सरकार के प्रति बनाने में, इस चुनाव के दौरान श्वेत और अश्वेत के बीच पैदा हुए विभाजन को भरना भी एक बड़ी और भारी जिम्मेदारी है जिसके लिए बाइडन के पास कमला हैरिस का चेहरा है।
सूझ-बूझ से जूझ कर कठिनाइयों को जीतना बाइडन की फितरत रही है। उम्र का चाहे कोई पड़ाव हो, बाइडन में संघर्ष करने का गजब का जज्बा है। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति का पारिवारिक व राजनीतिक जीवन कठिनाइयों से भरा रहा है जिसका उन्होंने बखूबी सामना किया है। ‘मैं तोडऩे में नहीं, जोडऩे में विश्वास करता हूं’ और ‘अमरीका उनकी धरती ही नहीं जिन्होंने इस पर जन्म लिया है, बल्कि उनकी भी है, जिन्होंने दूसरे देशों से आकर अमरीका को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दिया है’ की सोच बाइडन के सामाजिक समरसता की ओर बढ़ते कदम हैं। बाइडन ने शपथ से पहले ही सब को साथ लेने का प्रमाण दे दिया है। उन्होंने करीब 20 भारतीय-अमरीकी लोगों के साथ विभिन्न देशों के नागरिकों को अपने प्रशासन में महती भूमिका दी है। यह विविधता अमरीका को विकास के मार्ग पर ले जाती दिख रही है, लेकिन धरातल पर चुनौतियां भी कम नहीं हैं।