मोबाइल फोन से होगी नकली सामान की पहचान
इस प्रोजेक्ट के हेड आईआईटी, कानपुर के मटीरियल साइंस डिपार्टमेंट के प्रफेसर दीपक है। उन्होंने बताया कि वो 2012-13 में इलेक्ट्रॉनिक चिप के प्रॉजेक्ट पर काम कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने सोचा कि चिप में स्टोर जानकारियों को पढ़ने के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक रीडर खरीदना होगा। लेकिन यह आम उपभोक्ताओं के लिए असुविधाजनक होगा। रीडर की जगह यह सुविधा मोबाइल फोन में उपलब्ध हो जाए तो काम बहुत ही आसान हो जाएगा। इसके लिए उन्होंने 2014 में आईआईटी, कानपुर के फ्लेक्स-ई सेंटर में अपनी टीम के साथ थ्री-डी टैग पर काम शुरू कर दिया। इसके बाद लगभग ढाई साल की कड़ी मेहनत के बाद यह टैग तैयार हुआ। इस टैग को विकसित करने वाली टीम में प्रफेसर दीपक और प्रफेसर मोनिका कटियार के अलावा सतीश चंद्रा, प्रणव अस्थाना, उत्कर्षा और प्रियंका हैं। उनके इस टैग में दवा, कीटनाशक और पर्सनल केयर प्रोडक्ट बनाने वाली कई कंपनियों ने रुचि दिखाई है।
ऐसे काम करता है टैग
कंपनियां अपनी अच्छा के अनुसार इस टैग को खरीदेंगी। आईआईटी कैंपस में ही इसकी मार्केटिंग के लिए एक कंपनी बनाई गई है। इस टैग में प्रोडक्ट का नाम, कंपनी, बैच नंबर और एमआरपी आदि सभी जरूरी जानकारियां मौजूद होंगी। इस टैग की कीमत करीब पांच रुपए होगी। इस टैग को प्रोडक्ट पर लगाया जाएगा। ग्राहकों को टैग में मौजूद जानकारियां पढ़ने के लिए गूगल प्ले स्टोर से 10 एमबी का एक एप डाउनलोड करना होगा। टीम के सदस्य प्रणव अस्थाना का कहना है कि अभी यूज किए जा रहे कोड का ड्यूप्लिकेशन करना संभव है लेकिन इस टैग के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की जा सकेगी।