कॉल ड्रॉप्स के लिए सब्सक्राइबर्स को मुआवजा देना पड़ा तो वॉइस और डेटा टैरिफ में हो सकती है
नई दिल्ली। मोबाइल फोन ऑपरेटर्स ने आगाह किया है कि अगर उन्हें कॉल ड्रॉप्स के लिए सब्सक्राइबर्स को मुआवजा देना पड़ा तो वॉइस और डेटा टैरिफ में मजबूरन बढ़ोतरी करनी पड़ेगी। टेलीकॉम ऑपरेटर्स का कहना है कि कॉल ड्रॉप पर हर्जाना देने से उनकी कॉस्ट बढ़ जाएगी। कंपनियों का कहना है कि 3जी और 4जी सर्विसेज के लिए जितने इन्वेस्टमेंट जरूरत है, उसे देखते हुए वो इसका बोझ नहीं उठा पाएंगी और इस बोझ को सब्सक्राइबर्स पर डालना पड़ेगा। सेलुलर ऑपरेटर्स असोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) के डायरेक्टर जनरल राजन एस मैथ्यूज ने कहा है कि ऑपरेटर की कॉस्ट में किसी भी प्रकार की बढ़ोतरी (जिसका हिस्सा पेनल्टी भी है) से टैरिफ पर प्रेशर बढ़ेगा।
सीओएआई, जीएसएम टेक्नॉलजी पर ऑपरेट करने वाली भारती एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया सेलुलर जैसी टेलिकॉम कंपनियों को रेप्रिजेंट करती है। वहीं, सीडीएमए या ड्यूल टेक्नॉलजी का इस्तेमाल करने वाली टाटा टेलिसर्विसेज और रिलायंस कम्यूनिकेशंस जैसी कंपनियों की नुमाइंदगी असोसिएशन ऑफ यूनिफाइड सर्विस प्रोवाइडर्स ऑफ इंडिया (एयूएसपीआई) करती है।
सेक्टर रेग्युलेटर ट्राई ने टेलिकॉम कंपनियों से कहा है कि उनके फॉल्ट से होने वाली कॉल ड्रॉप पर वह 1 जनवरी 2016 से कस्टमर को प्रत्येक कॉल के लिए 1 रूपए का हर्जाना दें। किसी भी सब्सक्राइर के लिए मुआवजे की सीमा रोजाना 3 रूपए तय की गई है। ट्राई के इस आदेश के खिलाफ टेलिकॉम कंपनियों ने कोर्ट की ओर रूख किया है। हालांकि, अदालत ने ट्राई के ऑर्डर पर कोई स्टे नहीं दिया है, लेकिन उसने रेग्युलेटर को ऑपरेटर्स के खिलाफ ऐक्शन लेने से भी मना किया है। टेलिकॉम कंपनियों ने अभी तक यूजर्स को मुआवजा देना शुरू नहीं किया है। उनका कहना है कि वह कोर्ट का फैसला आने के बाद ही ऐसा करेंगी। इस मामले की अगली सुनवाई 6 जनवरी को होनी है।
टेलिकॉम कंपनियों का कहना है कि कॉल ड्रॉप लेवी से सालाना 54,000 करोड़ रूपए का उन्हें नुकसान होगा। टेलिकॉम डिपार्टमेंट और रेग्युलेटर ने सख्ती के साथ इसका विरोध किया है। ट्राई का कहना है कि इससे सालाना अधिकतम 800 करोड़ रूपए का असर पड़ेगा। एयूएसपीआई के सक्रेटरी जनरल अशोक सूद कोर्ट से अपने पक्ष में फैसले की उम्मीद कर रहे हैं। लेकिन, किसी लेवी के कारण रेट्स पर पडऩे वाले असर को लेकर वह सजग भी हैं। अप्रैल 2015 तक टेलिकॉम सेक्टर पर कुल 3.5 लाख करोड़ रूपए का कर्ज था।
विशलेषकों के अनुसार यदि टेलिकॉम कंपनियों को कॉल ड्रॉप के बदले सब्सक्राइबर्स को मुआवजा देना पड़ा तो इस कर्ज में बढ़ोतरी हो सकती है। उनका कहना है कि कंपनियों की बैलेंस शीट पर पहले ही काफी दबाव है, ऐसे में वह अतिरिक्त कर्ज का बोझ नहीं उठा सकतीं। वह भी ऐसे समय में, जब उन्हें सर्विसेज के एक्सपैंशन के लिए अगले 10 साल में 50,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की जरूरत है।