कैसे करें दशमी के दिन माता की अराधना
पंडित पंकज वशिष्ठ के मुताबिक इस दिन सुबह अपने घर के बाहर गोबर के चार पिण्ड बनाए, जिनको श्री राम समेत उनके चार भाइयों की छवि मानना चाहिए। उसी दौरान गोबर के चारों पिंडो में भींगे हुए चावल और चुंदरी रखकर उसे किसी कपड़े से ढ़क दें। फिर उनकी पूजा अर्चना करें। पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराए। जिससे आपका पूरा साल सुखमयी बीतेगा। वहीं बारह बजे से पहले ही पूजा पाठ का सारा काम सुबह निपटा लें। इस दिन नीलकंठ नामक पक्षी को देखना भी शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि वो शिव का ही रूप होता है। बता दें कि इस पर्व को शौर्य के साथ-साथ ही बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी माना जाता है। वहीं इस दिन दान पुण्य से भी लाभ मिलता है।दशहरा पूजा के बाद दानपुण्य करें तो उससे लाभ मिलेगा।
रावण जलाने का कारण
दुर्गापूजा के दसवें दिन पूरे देश में अलग अलग जगहों पर रावण को जलाया जाता है। जिसके पीछे की मूल में एक कथा है जो श्रीराम से जुड़ी है। कहते हैं 14 साल के वनवास में रावण द्वारा सीता का हरण कर लिया जाता है। सीता को बचाने के लिए भगवान राम ने अधर्मी रावण से कई दिनों तक युद्ध किया। तभी शारदीय नवरात्रों के दिनों भगवान राम ने शक्ति की देवी दुर्गा की अराधना लगातार नौ दिनों तक की। इसके बाद भगवान श्रीराम को मां दुर्गा का वरदान मिला। इसके बाद मां दुर्गा के सहयोग से भगवान राम ने युद्ध के दसवें दिन रावण का वध कर उनके अत्याचारों से सभी को बचाया। इसी परंपरा के तहत दुर्गापूजा के दसवें दिन रावण, मेघनाथ और कुम्भकर्ण को बुराई का प्रतीक मानकर इनके पुतले को जलाया जाता है।