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सांस थमने तक चट्टान की तरह कायम रहा जज्बा

locationमुरादाबादPublished: Jan 30, 2016 12:59:00 pm

Submitted by:

Abhishek Pareek

मातृभूमि की सेवा का जज्बा लेफ्टिनेंट अभय पारीक में बचपन से ही था। पढ़ाई में होनहार होने के साथ -साथ वे अच्छे मुक्केबाज भी थे।

मातृभूमि की सेवा का जज्बा लेफ्टिनेंट अभय पारीक में बचपन से ही था। पढ़ाई में होनहार होने के साथ -साथ वे अच्छे मुक्केबाज भी थे। कॉलेज स्तर पर उन्हें सोने के कई तमगे भी मिल चुके थे, जिसके चलते उन्हें एक प्रतिष्ठित कॉलेज में स्पोर्ट्स टीचर बनने का ऑफर भी मिला, लेकिन एनसीसी कैडेट पारीक ने सेना भर्ती को एकमात्र जीवन का ध्येय रखा।

‘घर जाकर मत कहना रे साथी, संकेतों में समझाना………
मौत शहीदों की पाई है….
आंख में आंसू मत लाना ..।’

गुलाबी नगरी के लाल लेफ्टिनेंट अभय पारीक पाकिस्तानी सेना से लोहा लेते हुए कुछ इसी अंदाज में वीरगति को प्राप्त हुए थे। तारीख 10 जून 2002 । उस समय ज मू-कश्मीर के राजौरी में तैनात 69फील्ड रेजीमेंट के लेफ्टिनेंट अभय पारीक 17 सिख बटालियन के साथ अटैच थे। बॉर्डर पर गश्त के दौरान अचानक भारतीय खेमे के दूसरी ओर से गोलीबारी शुरू हो गई। दुश्मन से लोहा लेने के दौरान अचानक एक गोला लगने से ले. अभय गंभीर रूप से जख्मी हो गए। इसके बावजूद उनका जज्बा नहीं डिगा और उन्होंने तत्काल पीछे खड़े साथियों को मैसेज दिया। दुश्मन को धूल चटाने की जिद और चट्टान से भी ऊंचे हौसले के बूते ले. अभय ने जवाबी फायरिंग की एवं पाकिस्तान की तीन चौकियों को नष्ट कर दिया। फिर उन्हें हेलिकॉप्टर से अस्पताल पहुंचाया गया।

पापा से कुछ ना कहना
मौके पर मौजूद जवानों के अनुसार पारीक ने हेलिकॉप्टर में सवार होने से पहले सभी से हाथ मिलाया और जल्द आने का वादा किया था। उस दौरान किसी को भी ये नहीं लग रहा था कि जल्द लौटने का कहने वाले पारीक से कभी मुलाकात नहीं होगी। हेलिकॉप्टर में भी साथियों से आराम से बातचीत करते हुए आए, लेकिन जैसे ही शरीर साथ छोडऩे लगा तो उनके मुख से एक ही बात निकली कि मुझे मां की याद आ रही है। फिर कुछ संभले और कंपनी कमांडर से बोले प्लीज, पापा को कुछ मत बताइएगा!

एक लाल शहीद, दूसरा सरहद पर
शहीद ले. अभय पारीक के पिता के.एस पारीक फिलहाल उच्च न्यायालय में अधिवक्ता हैं। सीआरपीएफ से सेवानिवृति के बाद उन्होंने वकालत शुरू कर दी, ताकि जरूरतमंदों की सेवा की जा सके। पिता पारीक ने बताया कि उनके दो बेटों में से एक मेजर अक्षय पारीक अभी उधमपुर में तैनात है। उनकी पत्नी 25 साल पहले ही दुनिया छोड़ चुकी हैं। अभय को याद करते हुए उन्होंने बताया कि वो जब भी फोन करता था तो कहता था कि पापा भारत-पाक की गोलीबारी की आवाज सुनाता हूं। हमेशा कहता मै ठीक हूं, आप खुद का ध्यान रखना।

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