scriptPitru Paksha 2017: अजीब है इस गांव की परंपरा, श्राद्ध में नहीं दिया जाता पंडितों को दान | UP village not give Pandits Dakshina in pitru paksha 2017 news hindi | Patrika News

Pitru Paksha 2017: अजीब है इस गांव की परंपरा, श्राद्ध में नहीं दिया जाता पंडितों को दान

locationमुरादाबादPublished: Sep 07, 2017 02:30:00 pm

Submitted by:

pallavi kumari

इस गांव के लोग श्राद्ध के सोलह दिन ब्राहमण को दान देना तो दूर, उनसे बोलना और उन्हें देखना भी जरूरी नहीं समझते है, ना ही भीख देते हैं।
 
 

Pitru Paksha 2017

Pitru Paksha 2017

मुरादाबाद. हिंदू धर्म में हर मान्यतों के मुताबिक श्राद्ध करने के बाद ब्राह्मण को दान देते हैं लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी यूपी का एस गांव ऐसा भी है जहां ब्राह्मण को दान देने का रिवाज ही नही है। इन दिनों पितृ पक्ष चल रहा है जिसमें हिन्दू धर्म की मान्यतों के मुताबिक सभी लोग अपने पूर्वजों को नमन कर उनके नाम पर दान पुण्य का काम करते हैं। लेकिन संभल के गांव भगतां नगला में ऐसा नहीं है। यहां लोग श्राद्ध नहीं मनाते और न ही किसी ब्राह्मण को दान देते हैं। यहां माना जता है कि ऐसा करने से गांव में गंभीर संकट आ सकता है।
दरसल ब्रहम पुराण के ही अनुसार, पितृ पक्ष में पूर्णिमा के दिन पितृ धरती पर आ जाते हैं और वह पितृ अमावस्या तक धरती पर ही रहते हैं। ये अवसर पितरो को तृप्त करने का होता है। जहां पुरे हिन्दू धर्म में पितृ पक्ष में घर-घर में पितरों का पूजन और तर्पण होता है। वही उत्तर प्रदेश के संभल के एक गांव भगता नगला में ग्रामीण करीब डेढ़ दौ सौ साल से इस गांव के लोग श्राद्ध नहीं मनाते। श्राद्ध के दिन लोग भिखारी को भीख भी नहीं देते हैं और तो और इन सौलह दिन लोग ब्राहमण से न तो बोलते हैं और न ही नमस्ते राम-राम करते है।
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श्राद्ध बीत जाने के बाद ब्राहमण और भिखारी से ग्रामीणों की आम दिनों की तरह दिनचर्या हो जाती है। गांव के मनोज ,वीरेश यादव, ओमकार सिंह बताते है कि भगता नगला के लोग श्राद्ध न मनाने का कारण एक ब्राह्मणी का शाप बताते हैं। ब्राह्मणी के बारे में लोगों का कहना है कि पड़ोस के गांव शाहजहांबाद की एक पंडितानी श्राद्ध में उनके गांव आई थी। सारे दिन उन्होंने दान लिया शाम को बरसात होने के कारण उन्हें भगता नगला में ही रुकना पड़ा। अगले दिन वे अपने घर गईं तो उनके पति ने उन पर तमाम लांछन लगा कर उन्हे घर से निकाल दिया।
लोगों का कहना है कि ब्राह्मणी वापस भगता नगला आ गईं और इस गांव के लोगों से कहा कि यदि अब किसी ने ब्राहमण को दान दिया तो उसका बहुत बुरा होगा। जब गांव के लोगों ने कहा कि बिना ब्राहमण किस तरह विवाह और हिन्दू धर्म के संस्कार होंगे तो ब्रह्माणी ने कहा कि श्राद्ध के सोलह दिन किसी ब्राहमण को न दान देना, न उससे बोलना, इस दौरान भीख भी नहीं दें यदि ये सब करोगे तो खुशहाल रहोगे।
गांव वाले तब से अब तक श्राद्ध न मनाने की परंपरा पर कायम है। इसलिए पुरखों की श्राद्ध न मनाने की परंपरा आज भी कायम है। ऐसा नहीं है कि किसी ने इस परम्परा पर सवाल नहीं उठाए है, लेकिन अनजाने भय ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया है।
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