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राक्षसों का वध कर अशोक बाटिका उजाड़ी और किया लंका दहन

locationमोरेनाPublished: Nov 28, 2020 06:15:15 pm

Submitted by:

Ashok Sharma

श्रीदाऊजी धाम मुरैना गांव में चल रही रामलीला में हनुमान जी की लंका यात्रा की लीला दिखाई

राक्षसों का वध कर अशोक बाटिका उजाड़ी और किया लंका दहन

राक्षसों का वध कर अशोक बाटिका उजाड़ी और किया लंका दहन


मुरैना. श्री दाऊजी धाम मुरैनागांव में शुक्रवार की रात को लंका दहन की लीला दिखाई गई थी। सुग्रीव की आज्ञा का पालन करते हुए हनुमदादि बानर श्री सीता जी की खोज करते हुए दक्षिण दिशा में जारहे थे। तब मार्ग में समुद्र के पास इनको जटायू सम्पाती मिला। उन्होंने सीता जी का पता बताया। जामवन्त जी ने श्री हनुमानजी से कहा कि हे हनुमानजी महाराज आपके लिए ऐसा कौन सा कठिन कार्य है, जिसे आप नहीं कर सकते। आपका तो अवतार ही राम कार्य करने के लिए हुआ है। जामवन्त जी के वचन सुनकर श्री हनुमानजी बड़ेे प्रशन्न हुए और सबसे कहने लगे कि हे भाइयो मैं लंका जाता हूं। आप लोग कंद मूल फल खाकर यहीं रहना। मेरी प्रतीक्षा करते रहना। मार्ग में हनुमानजी को मैनाक पर्वत मिला। उसने रामदूत से कहा कि हे हनुमान जी कुछ समय के लिए आप मेरे ऊपर विश्राम कर लें। तब हनुमानजी ने उससे कहा कि हे भाई भगवान श्री रामचंद्र जी के कार्य को किये बिना मैं विश्राम नहीं कर सकता। हनुमानजी आगे बढे सुरसा ने भी हनुमान जी की परीक्षा ली। आगे हनुमान जी को लंकिनी राक्षसी मिली। उसने भी हनुमानजी की परीक्षा ली। और उसने लंका जाने की युक्ति बता दी। लंका पहुंचकर हनुमानजी राम भक्त विभीषण से मिले। विभीषण जी ने सीता जी से मिलने की युक्ति बता दी। हनुमानजी अशोक वाटिका में सीता जी के यहां पहुंचे। ऊपर अशोक वृक्ष पर बैठकर नीचे जहां सीताजी बैठी थ वहां उन्होंने मुद्रिका डाल दी। जो राम जी ने हनुमानजी को सीता जी के लिए दी थी। उसे देख कर सीता जी विस्मित हुईं और कहने लगीं की यह मुद्रिका किसने डाली है। प्रकट क्यों नहीं होता। तत्क्षण हनुमान जी सीता जी के सामने प्रकट हो गए। सीताजी ने उनको भूरि भूरि आशीर्वाद किये। उसके बाद हनुमान जी सीता जी को प्रणाम करके वाटिका में फल खाने लगे। वहां राक्षसों से युद्ध हुआ। रावण के पुत्र अक्षयकुमार को हनुमानजी ने मार दिया। अंतत: मेघनाथ के द्वारा ब्रह्मास्त्र से हनुमानजी को बंधवाया गया। रावण के पास हनुमानजी को ले जाया गया। रावण ने कहा कि इसे मार डालो। तव विभीषण जी ने कहा कि हे भाई ये दूसरे राज्य से आया हुआ राजदूत है। राजदूत को मारना कायरता कहलाती है, अपराध है। यदि आप इसे मार देंगे तो फिर आपकी वीरता का बखान इसके स्वामी से कौंन करेगा। इसलिये इस वानर को मृत्यु दण्ड न देते हुए अन्य कोई दण्ड दें। विभीषण के कहने के अनुसार हनुमानजी को मृत्युदंड न देकर रावण ने हनुमानजी की पूंछ में वस्त्र लिपटवा कर, तेल डलवा कर अग्नि लगवा दी। श्री हनुमानजी महाराज ने विभीषण के घर को छोडक़र सारी लंका जला दी। इसके बाद सीता जी से विदा लेकर हनुमान जी राम जी के पास आये, लंका का घटनाक्रम सुनाया। रामजी ने हनुमानजी को बहुत बहुत आशीर्वाद दिया और श्रीराम जी बहुत प्रशन्न हुए।

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