राजनीतिक एजेंडे से बाहर नहीं आ पाया बंद शक्कर सहकारी कारखाना
मोरेनाPublished: Dec 31, 2021 09:38:10 pm
एक हजार से ज्यादा कर्मचारियों को प्रत्यक्ष और पांच हजार से ज्यादा किसानों को गन्ना उत्पादन के माध्यम से रोजगार उपलब्ध कराने वाले सहकारी शक्कर कारखाने को चालू कराने का सपना राजनीतिक एजेंडे में उलझकर रह गया है।
बंद सहकारी शक्कर कारखाना।,बंद सहकारी शक्कर कारखाना।,बंद सहकारी शक्कर कारखाना।
रवींद्र सिंह कुशवाह,मुरैना. हर चुनाव में मुद्दा बनने वाला कारखाना 12 साल से अधिक समय से बंद है और करीब 30 करोड़ रुपए की देनदारियां अटकी हैं।
कारखाना बंद हुआ तो छह हजार से ज्यादा लोगों पर प्रत्यक्ष और हजारों लोगों पर परोक्ष रूप से इसका असर हुआ। कई परिवारों के मुखिया सब्जी बेचने, रेड़ी लगाने को मजबूर हुए। गन्ना उत्पादक किसानों को वैकल्पिक खेती अपनानी पड़ी, लेकिन राजनीतिक दल सब्जबाग दिखाते रहे। वर्ष 2014 के चुनाव में भी यह मुद्दा बना, लेकिन बड़े नेता इस पर बात करने से बचते रहे। कारखाने की बंद मशीनों और अन्य कबाड़ सहित परिसर की देखरेख के लिए करीब डेढ़ दर्जन कर्मचारी अब भी कार्यरत हैं, लेकन उन्हें भी भविष्य अंधकार मय दिख रहा है। हालांकि पिछले दो-तीन साल से शासन स्तर से इसे जन भागीदारी से संचालित कराने के दिखावटी प्रयास हुए, लेकिन कोई आगे नहीं आया।
चार विकासखंडों के लोग जुड़े थे कारखाने से
कैलारस सहकारी शक्कर कारखाना अपने समय में लोगों की समृद्धि का आधार था। इससे प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से 10 लोग रोजगार प्राप्त करते थे। जौरा, कैलारस, सबलगढ़ के अलावा श्योपुर के विजयपुर और वीरपुर के अलावा शिवपुरी जिले के मोहना तक के किसान यहां गन्ना बेचते थे। लेकिन किसानों का 80 लाख रुपए से ज्यादा रुपया भुगतान के लिए फंसा हुआ है। इसे यदि ब्याज सहित जोड़ा जाए तो यह राशि डेढ़ से दो करोड़ के बीच पहुंचती है।
1200 से ज्यादा कर्मचारी करते थे यहां काम
शक्कर कारखाना जब पूरी क्षमता से संचालित था तब यहां 1200 से ज्यादा कर्मचारी काम करते थे। हालांकि डेढ़ दर्जन कर्मचारी अब भी काम कर रहे हैं कि लेकिन उन्हें भी समय पर भुगतान नहीं हो पाता है। चुनाव आते हैं तो शासन स्तर से कुछ राशि जारी करवा दी जाती है, लेकिन बाद में सब भूल जाते हैं। मंडी बोर्ड एवं अन्य संस्थाओं के बकाया हैं।
बजट के अभाव चालू कराने के प्रयास विफल
कारखाने को 2010 में चालू कराने का प्रयास किया गया था, लेकिन अनुपयोगी हो चुकी मशीनों ने काम नहीं किया। बॉयलर खराब हो जाने से इसमें सफलता नहीं मिली। इसके चालू कराने के लिए 50 करोड़ रुपए से अधिक की राशि चाहिए, जो न तो सरकार से मिल पा रही है और न ही कोई सहकारी क्षेत्र की संस्था आगे आ पा रही है। हालांकि 2014 में लोकसभा का चुनाव लडऩे आए अनूप मिश्रा ने यह कहा था कि नई मशीनों की व्यवस्था कराने का प्रयास करेंगे, लेकिन सफलता नहीं मिली।
नंबर गणित
1200 से ज्यादा कर्मचारी जुड़े से कारखाने में रोजगार से।
5 हजार से ज्यादा किसान भी गन्ना उत्पादन कर कारखाने से पलते थे।
80 लाख रुपए से ज्यादा बकाया है किसानों का कारखाना प्रबंधन पर।
03 करोड़ से ज्यादा की राशि राज्य शासन की भी बकाया है।
कथन-
गन्ना उत्पादन करके किसान सहकारी शक्कर कारखाने को बेचते थे। इससे किसानों के यहां समृद्धि थी। कर्मचारियों के परिवार भी पलते थे, लेकिन बंद होने से हजारों परिवार तबाह हो गए।
रामस्वरूप सिंह सिकरवार, किसान जौरा
-शक्कर कारखाने को चालू करवाने के प्रयास तो हो रहे हैं, बहुत बड़ा प्रोजेक्ट है, सरकार की मदद के बिना संभव नहीं है। हमारा प्रयास निरंतर जारी है।
सूबेदार सिंह रजौधा, विधायक जौरा/कैलारस