दोपहर में दो बजे से ही नगर के हर गली-मोहल्ले और सडक़ों पर भुजरिया विसर्जन और मेले में जाने वाले लोगों के झुंड दिखाई देने लगते थे। पुलिस और प्रशासन भी तीन दिन पहले से यहां मेला आयोजन की तैयारियां करवाते थे। लेकिन इस बार सन्नाटा पसरा है। बड़ोखर तालाब में पानी पर्याप्त है लेकिन कोरोना संक्रमण का डर भारी है।
अंबाह रोड पर मंगलवार को भुजरिया विसर्जन वाला कोई नहीं दिखा। लोगों ने गली-मोहल्लों में ही भुजरिया नलों, हैंडपंपों और तसलों में पानी लेकर विसर्जित कर लीं। लेकिन इससे उन्हें तसल्ली नहीं मिली। हर साल दो बजे से ही भुजरिया मेले में पहुंच जाने वाले अंगद का कहना था कि भुजरिया मेला न लगने का हमें बहुत बुरा लग रहा है। लेकिन कोरोना बीमारी से समाज का बचाव बेहद जरूरी है। इसलिए प्रशासन के हर निर्णय में हम और पूरे जिले के लोग साथ हैं। हमारे 65 साल के जीवन में ऐसा क्षण कभी नहीं आया। भुजरिया मेला केवल एक सामाजिक परंपरा ही नहीं बल्कि समरसता का एक बडा माध्यम भी है। यहां होने वाले लोकगीत, लोकनाच, कन्हैया व धार्मिक आयोजनों से लोग एक दूसरे के नजदीक आते थे। मेले में ब‘चे झूलों का और बडे मिठाइयों का आनंद लेते थे। इस बार पुल चौराहे से ही सन्नाटा सा दिखा। हालांकि पुलिस पूरे इलाके में भ्रमण कर रही थी, लेकिन यातायात नहीं था। गांवों में भी इस बार खास उत्साह नहीं दिखाई दिया।
यही स्थिति मौरछठ पर रहने वाली है। मौरछठ पर भी बड़ोखर तालाब, मुरैना गांव सहित जिले भर में एक दर्जन स्थानों पर मौर-मौरी विसर्जन के कार्यक्रम होते थे, लेकिन इस बार ऐसे आयोजनों को प्रतिबंधित किया गया है।
लोक कलाकार भी मायूस पर देश के लिए सब बर्दाश्त: भुजरिया मेला आपसी मेल-मिलाप का बड़ा माध्यम था। मेले में दूर-दूर से लोग आते थे और मुलाकात कर लेते थे। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पाया। एक निजी कंपनी में काम करने वाले नरेंद्र सिंह ने बताया कि वे हर साल भुजरिया मेले पर जरूर आते हैं। इस बार मेला नहीं लगने को लेकर कोई जानकारी नहीं थी, ग्वालियर आने के बाद पता चला। इससे निराशा हुई लेकिन बताया गया कि जिस प्रकार कोरोना की बीमारी बढ़ रही है, उसमें ऐसे प्रतिबंध जरूरी है।