बुरे काम का बुरा नतीजा: विभाग जागा, मिलावटखोरों को चुकानी पड़ी बड़ी सजा
मोरेनाPublished: Mar 08, 2020 11:35:45 pm
तीन-साढ़े तीन साल पुराने प्रकरणों में अब हो सका फैसला इनमें कुल १२ लाख रुपए का जुर्माना मिलावटखोरों पर किया गया है।
इनमें कुल १२ लाख रुपए का जुर्माना मिलावटखोरों पर किया गया है।
मुरैना. खास सुरक्षा अधिनियम के तहत प्रकरण तो बन रहे हैं, लेकिन इनके निराकरण का काम सुस्त है। आलम यह है कि सेंपल जांच के दौरान मिलावट साबित होने के बावजूद दण्ड निर्धारण में तीन से चार साल का वक्त लग रहा है। अभी हाल ही में ऐसे कुछ प्रकरणों का निराकरण हुआ है, जो तीन से चार साल पुराने हैं। इनमें कुल १२ लाख रुपए का जुर्माना मिलावटखोरों पर किया गया है।
खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत प्रकरण तैयार करने से लेकर चालान प्रस्तुत किए जाने और फिर सुनवाई की प्रक्रिया हमेशा से सुस्त रही है। अव्वल तो सेंपल फेल होने के लंबे समय बाद खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग द्वारा प्रकरण तैयार किए जाते हैं। फिर इनके चालान भी जल्द प्रस्तुत नहीं किए जाते। इसके बाद जब एडीएम कोर्ट में प्रकरणों की सुनवाई के दौरान कभी आरोपी पक्ष की गैरमौजूदगी तो कभी खाद्य एवं औषधि प्रशासन की सुस्ती के चलते फैसलों में देरी होती रही है। अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि विगत २६ फरवरी को मिलावट के जिन तीन मामलों में फैसला दिया गया, उनमें से दो प्रकरण साढ़े तीन साल पुराने हैं, जबकि एक अन्य केस तीन साल पहले का। इन मामलों में एडीएम कोर्ट ने दो लोगों पर साढ़े चार लाख प्रति व्यक्ति जुर्माना किया है तो एक पर तीन लाख का अर्थदण्ड लगाया है।
प्रकरण एक नजर में
-१२ अक्टूबर २०१६ को खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग की टीम ने मुरैना की सिंधी कॉलोनी से संतोष सविता के यहां से दुग्ध उत्पादों के सेंपल लिए थे। सेंपलों के अमानक पाए जाने के बाद उस पर साढ़े ४ लाख रुपए का जुर्माना किया है।
-१२ अक्टूबर २०१६ को ही खाद्य सुरक्षा अधिकारी अवनीश गुप्ता ने मार्कण्डेश्वर बाजार में आरिफ उर्फ मीनू खान के यहां से दुग्ध उत्पादों के सेंपल लिए थे, जो अमानक पाए गए। आरिफ खान पर भी साढ़े ४ लाख रुपए का जुर्माना किया गया है।
-२७ अप्रैल २०१७ को खाद्य सुरक्षा अधिकारी रेखा सोनी की टीम ने गणेशपुरा स्थित हिमांशु बंसल की फर्म प्रदीप कोल्ड स्टोर्स से पनीर के दो नमूने लिए। नमूने फेल साबित होने के बाद हिमांशु पर ३ लाख रुपए का जुर्माना किया गया है।
इस तरह की सुस्ती भी
खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत कार्रवाई करने में कई अन्य तरह की सुस्ती भी देखने को मिलती रही है। मसलन यदि कोई सेंपल स्टेट लैब से पास होकर आ जाए तो खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग उसे पुन: जांच के लिए सेंट्रल लैबोरेटरी नहीं भेजता, जबकि ऐसा किया जाना चाहिए। इसी तरह एडीएम कोर्ट से लोगों को क्लीन चिट मिलने के बाद प्रकरणों को प्राय: जुडीशियल में भी नहीं ले जाया जाता।
असल में हमारे यहां से तो निर्धारित समय सीमा में प्रकरण तैयार करके चालान प्रस्तुत किए जाते रहे हैं। उसके बाद मामला एडीएम कोर्ट में चलता है। इस बारे में हम क्या कह सकते हैं।
धर्मेन्द्र जैन, खाद्य सुरक्षा अधिकारी