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अवैध खनन ने चकनाचूर किया वाटर टूरिज्म का भविष्य, घडिय़ाल प्रदेश नाम का

locationमोरेनाPublished: Dec 08, 2021 08:08:09 pm

Submitted by:

Ravindra Kushwah

चंबल घडिय़ाल अभयारण्य में पर्यटन से रोजगार की अपार संभावनाओं माफिया ने बेखौफ रेत खनन और परिवहन करके चकनाचूर कर दिया है। राजघाट पर औपचारिकता के लिए पर्यटक आ रहे हैं, वह भी दशहत के साए में, दिन-रात हो रहे खनन और रेत परिवहन से घडिय़ालों और डॉल्फिन के प्राकृतिक रहवास भी अब यहां नहीं बचे हैं।

चंबल घडिय़ाल सेंचुरी- मुरैना

घडिय़ाल धूप सेंकते हुए।

रवींद्र सिंह कुशवाह, मुरैना. विचरण करते हुए घडिय़ाल यदाकदा राजघाट पर दर्शन दे जाते हैं। लेकिन डॉल्फिन के दर्शन दुर्लभ हो जाते हैं।
435 किलोमीटर राष्ट्रीय चंबल घडिय़ाल अभयारण्य में दुनिया भर के अभयारण्यों की तुलना में ज्यादा घडिय़ाल हैं। प्रवासी पक्षियों का डेरा सर्दियों मेें रहता है, लेकिन फिर भी जलीय पर्यटन परवान नहीं चढ़ पा रहा है। इसकी मूल वजह मोटरबोट क्लब के आसपास चंबल से रेत का अवैध खनन और परिवहन ही है। मोटरबोट क्लब के रास्ते से रेत से भरे ट्रैक्टर-ट्रॉलियों, जेसीबी व अन्य वाहनों के दिन-रात आवागमन से पर्यटकों का दुर्घटना का भी डर लगा रहता है।
रोकने की कार्रवाई औपचारिक, प्रयास दिखावटी
चंबल वाटर टूरिज्म को राजघाट पर अवैध खनन और परिवहन को पूरी तरह रोककर ही बढ़ाया जा सकता है। प्रशासन कार्रवाई के नाम पर डंप रेत को नष्ट कराने की औचारिकता तक सिमट जाता है। लंबे समय से रेत खनन स्थलों पर जाकर कार्रवाई नहीं हो पाई है। डंप रेत को नष्ट करने से माफिया पर कोई खास असर नहीं हो रहा है। दिन-रात राजघाट नए सड़क पुल, रेलवे पुल और मोटरबोट क्लब के बीच में खनन हो रहा है। बुधवार को ही एक फोटो सामने आया है, जहां राजघाट पर सैकड़ों ट्रैक्टर ट्रॉलियां अवैध खनन और परिवहन में लगी दिख रही हैं।
घडिय़ाल स्टेट के दर्र्जे को भी नहीं भुना पा रहे
वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के वर्ष 2019 में किए गए सर्वे में मप्र को घडिय़ाल स्टेट का दर्जा मिल चुका है। 2019 में चंबल में घडिय़ालों की गिनती 1255 सामने आई थी। 80 के दशक में चंबल में 46 और देश में महज 96 घडिय़ाल बचे थे। विश्व में इनकी संख्या 200 के करीब थी। पिछले साल फरवरी में वन विभाग ने चंबल में 1876 घडिय़ाल होने का दावा किया था। वर्ष 2020 की जलीय जीव गणना के बाद इनकी संख्या 2176 सामने आई है। वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट के सर्वे में गंडक दूसरी संरक्षक नदी चंबल के बाद वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट के सर्वे बिहार की गंडक नदी को घडिय़ालों के लिए सबसे मुफीद माना गया था।
वर्ष 2007 में आ चुका है गंभीर संकट
वर्ष 2007-08 में चंबल सेंंचुरी को ग्रहण लगता दिखा। लीवर सिरोसिस (लीवर में संक्रमण) से 100 से अधिक घडिय़ालों की इस दौरान मौत हो गई। हालांकि बाद मे घडिय़ालों का कुनबा तेजी से बढ़ा। मप्र, राजस्थान और उत्तरप्रदेश राज्यों से जुड़ी चंबल सेंचुरी का मुख्यालय मुरैना में है। यहां देवरी स्थित हैचिंग सेंटर ने घडियालों को अंडों को सहेजने और पालने में अहम भूमिका निभाई है। यहां पाले जाने वाले घडिय़ाल शावकों को तीन साल या 1.20 मीटर लंबा होने के बाद चंबल में छोड़ा जाता है।
1978 में स्थापित की घडिय़ाल सेंचुरी
घडिय़ाल के लिए अनुकूल परिस्थितियों को देखते हुए वर्ष 1978 में चंबल सेंचुरी की स्थापना हुई थी। मप्र के मुरैना, भिण्ड और श्योपुर जिले में 435 किमी में फैली चंबल नदी में घडिय़ालों की वंशवृद्धि तेजी हुई।
फैक्ट फाइल
2176 घडिय़ाल हैं चंबल अभयारण्य क्षेत्र में।
80 के करीब डॉल्फिन भी पल रही हैं चंबल में।
2007-08 में 100 से ज्यादा घडिय़ालों की हुई थी संदिग्ध मौत।
46 घडिय़ाल थे चंबल नदी में 80 के दशक में।
1978 में घडिय़ाल संरक्षण के लिए स्थापित की गई थी सेंचुरी।
20 लोकल टूरिस्ट औसतन रोज आ रहे राजाघाट पर।
कथन-
-कोराना काल के बाद मन था कि एक दिन जाकर मोटरबोटिंग की जाए। लेकिन एक सप्ताह पहले मथुरा से लौटे तो राजघाट पर खनन चल रहा था। ऐसे में वहां परिवार के साथ जाने का मन नहीं करता।
विजय सिंह, पर्यटक, ग्वालियर
-अवैध खनन घडिय़ालों सहित सभी जलीय जीवों के लिए खतरा है। इससे प्राकृतिक रहसवास नष्ट होते हैं। पारस्थिकीय तंत्र प्रभावित होता है। जब यहां घडिय़ाल व अन्य जीवों को भोजन नहीं मिलेगा तो उनका जीवनकाल प्रभावित होगा।
डॉ. विनायक सिंह तोमर, जीवविज्ञानी।
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