कलेक्टर ने गांवों का चयन न कर पाए सीइओ पर नाराजगी जाहिर की है। इस योजना में गांव के समन्वित विकास के लिए 20-20 लाख रूपए का विशेष बजट दिया जाता है। दो वर्ष में गांव को आदर्श बनाया जाता है। हालांकि पूर्व में चयनित किए गए आधा दर्जन गांवों में भी कोई खास बदलाव नहीं आया है।
नवीन कलेक्टर कार्यालय के सभाकक्ष में हुई समीक्षा में सामने आया कि जनपद पंचायतों ने प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना के तहत गांवों के चयन को गंभीरता से नहीं लिया। इसलिए 43 में से महज 17 गांवों का ही चयन हो पाया। 26 गांवों का चयन नहीं कर पाने के लिए कलेक्टर अनुराग वर्मा ने जिम्मेदार जनपद पंचायतों के सीइओ को कारण बताओ नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा है। इसके साथ ही शेष 26 गांवों की जानकारी जनपद सीइओ से तुरंत मांगी है। जानकारी प्राप्त होने के बाद डीपीआर बनाकर शासन को भेजी जाएगी। उसके बाद आदर्श ग्राम योजना में 43 गांव बनेंगे। कलेक्टर की अध्यक्षता में एक सप्ताह के भीतर इस मुद्दे पर फिर से बैठक बुलाई जाएगी।
यह 17 गांव हुए चयनित प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना में मुरैना विकासखण्ड के ग्राम बिचैला, गोबरा, इमलिया, रसीलपुर, अंबाह विकासखण्ड के ग्राम अंबाह, बिचैला, पोरसा विकासखण्ड के ग्राम लाडपुरा, रथा, सेंथरा अहीर, जौरा विकासखण्ड के ग्राम अरहेला, सांकरा, डोंगरपुर, कैलारस विकासखण्ड के ग्राम दीपहरा, थाटीपुरा और पहाडग़ढ़ विकासखण्ड ग्राम गैपरी, कैमारा और पचैखरा की पहचान प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना के तहत विकास के लिए की गई है।
बुनियादी सेवाएं देने की परिकल्पना है यह योजना कलेक्टर वर्मा ने कहा कि आदर्श ग्राम एक ऐसी संकल्पना है जिसमें लोगों को विभिन्न बुनियादी सेवाएं देने की परिकल्पना की गई है, ताकि समाज के सभी वर्गों की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके। इसलिए इस कार्य को प्राथमिकता के आधार पर करना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस योजना में 50 प्रतिशत से अधिक अनुसूचित जाति जनसंख्या वाले चुनिंदा गांवों का एकीकृत विकास सुनिश्चित किया जाता है। योजना के अंतर्गत सामाजिक आर्थिक विकास के लिए आवश्यक सभी अपेक्षित अवसंरचना की व्यवस्था की जरूरत है। सामाजिक आर्थिक संकेतकों में सुधार निगरानी योग्य संकेतकों के रूप में ज्ञात पहचानशुदा सामाजिक आर्थिक संकेतकों में सुधार किया जाना है। विशेष तौर पर गरीबी रेखा से नीचे के सभी अनुसूचित जाति के परिवारों को भोजन एवं जीवन यापन की सुरक्षा के प्रयास इसमें शामिल हैं। अनुसूचित जाति के सभी बच्चे माध्यमिक स्तर पर अपनी शिक्षा पूरी करें, मातृत्व एवं शिशु मृत्यु दर के सभी कारणों का समाधान भी करने का प्रयास किया जाता है। कुपोषण और खास तौर से महिलाओं और बच्चों में खत्म करना भी प्राथमिकता में रहता है। विभिन्न कार्यक्षेत्रों के लिए 50 निगरानी योग्य संकेतक 10 कार्यक्षेत्रों में निर्धारित हैं। इनमें पेयजल और स्वच्छता, शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण, समाज सुरक्षा, ग्रामीण सडकें और आवास, विद्युत और स्वच्छ ईंधन, कृषि पद्धतियां, वित्तीय समावेशन, डिजीटलीकरण, जीवन यापन और कौशल विकास शामिल हैं।