कैलारस में जब शक्कर फैक्ट्री संचालित थी तब जौरा, कैलारस, पहाडग़ढ़ व सबलगढ़ क्षेत्र में 2200 हेक्टेयर से अधिक जमीन पर गन्ने की फसल उगाई जाती थी। इसके विपरीत अब गन्ने का उत्पादन करीब तीन चार प्रतिशत ही रह गया है। अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, वर्ष 2019 में जौरा व पहाडग़ढ़ क्षेत्र के किसानों ने महज 7.2 हेक्टेयर में गन्ने की फसल बोई थी। यही स्थिति वर्ष 2020 की बताई गई है। गन्ने की फसल न उगाए जाने का सीधा असर यहां गुड़ उत्पादन पर भी पड़ रहा है। बल्कि यूं कहें कि गुड़ बनाने का काम यहां पूरी तरह बंद ही हो गया है। ऐसे में डिमांड पूरी करने के लिए गुड़ बाहर से मंगाया जा रहा है। यहां बता दें कि एक दशक पूर्व तक जौरा क्षेत्र में ही बड़े पैमाने पर गुड़ निर्यात किया जाता था। लेकिन अब इतना गुड़ भी नहीं बन रहा कि लोकल की डिमांड भी पूरी की जा सके। जानकारी के अनुसार इस समय सिर्फ जौरा व कैलारस के बीच भअपुरा सहित एक दो अन्य स्थानों पर ही कुछ किसान गुड़ बना रहे हैं। लेकिन वे इसे बाजार में सप्लाई के बजाय खुद ही बेच रहे हैं।
कहां-कहां से आ रहा है गुड़ जौरा व पहाडग़ढ़ क्षेत्र में पिछले कुछ सालों से बाहर के गुड़ का विक्रय किया जा रहा है। व्यवसायियों के मुताबिक गुड़ का आयात नससिंगपुर, करेली व डबरा से किया जा रहा है। डबरा से पांच किलोग्राम वजनी गुड़ की परिया मंगाई जा रही हैं तो अधिक वजन का गुड़ (भेला) नरसिंगपुर व करेली से आ रहा है।
फैक्ट फाइल – 2200 हेक्टेयर में बोई जाती थी दस दशक पूर्व गन्ने की फसल। – 4 प्रतिशत ही बोई जा रही है वर्तमान में गन्ने की फसल। – 10 क्विंटल के करीब गुड़ प्रतिदिन बिक जाता है लोकल बाजार में।
– 10 साल पहले यहां से बड़े स्तर पर निर्यात किया जाता था गुड़। – कैलारस सुगर फैक्ट्री बंद होने से गन्ने का उत्पादन भी समाप्त हो गया है। इसलिए गुड़ का उत्पादन बंद हो गया है। फैक्ट्री शुरू हो जाए तो फिर से क्षेत्र में गुड़ की बहार आ जाएगी।
अनेग सिंह तोमर, एसएडीओ, कृषि विभाग