80 साल के जीवन में ऐसा बंद कभी नहीं देखा
यह कहना है 80 साल के पं. वृंदावनलाल पलिया का। दिन भर घर में ही रहे। पलिया की तरह अन्य वरिष्ठजनों का भी यही मानना है।

मुरैना. 80 साल के जीवन में कई बार कई मुद्दों पर बाजार बंद होते देखा, लेकिन कोरोना को लेकर 'जनता कफ्र्यूÓ जैसा असर अपने पूरे जीवन में नहीं देखा। हालांकि यह कदम एक-दो दिन पहले ही उठाया जाना चाहिए था।
यह कहना है 80 साल के पं. वृंदावनलाल पलिया का। दिन भर घर में ही रहे। पलिया की तरह अन्य वरिष्ठजनों का भी यही मानना है।
इस बंद में दवा, दूध और खाने-पीने की दुकानें तक बंद रहीं, लेकिन इसके बावजूद किसी ने न तो शिकायत की और न ही कहीं विवाद की स्थिति बनी। यही हिंदुस्तान के लोगों की ताकत है।
प्रशासन और पुलिस की ओर से लगाए जाने वाले कफ्र्यू का असर ज्यादातर मुख्य सड़कों और बाजारों तक ही सीमित रहता था, लेकिन 'जनता कफ्र्यूÓ में गली-मोहल्लों तक में सन्नाटा पसरा रहा।
92 साल की रामबाई उपाध्याय कहती हैं कि ऐसा बंद उन्होंने पहले कभी नहीं देखा। बच्चों ने भी कहीं बाहर जाने की जिद नहीं की। बच्चों को भी पता था कि प्रधानमंत्री ने 'जनता कफ्र्यूÓ के लिए कहा है, इसलिए उत्साह के साथ पालन करना है।
बच्चों ने घर के भीतर ही रहकर कैरम, चैस खेला, खिलौनों से खेला और टीवी देखी, लेकिन एक भी बार बाहर जाने की जिद नहीं की। घर के बड़े सदस्यों ने भी टीवी देखकर और पूजा-पाठ करके समय बिताया।
65 साल की दाखश्री का कहना था कि लोगों के स्वास्थ्य के लिए यह बंद था। यह किसी के व्यक्तिगत फायदे की बात नहीं है, बल्कि सभी को इसका लाभ होगा। इसलिए लोगों ने स्वेच्छा से ही खुद को घरों में कैद रखा, जो बच्चे बाहर जाने के लिए मचलते थे, वे भी घर में ही बने रहे। 'जनता कफ्र्यूÓ की सूचना पहले से थी इसलिए लोगों ने जरूरत का सामान भी पहले ही मंगवाकर रख लिया था।
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