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साल में सिर्फ 154 कुपोषित बच्चे पहुंचे एनआरसी

प्राय: खाली पड़े रहते हैं पोषण पुनर्वास केन्द्र में पलंग
 
 

मोरेनाApr 10, 2019 / 06:25 pm

Vivek Shrivastav

साल में सिर्फ 154 कुपोषित बच्चे पहुंचे एनआरसी

मुरैना. बच्चों को कुपोषण से मुक्ति दिलाने के मामले में महिला एवं बाल विकास विभाग का मैदानी अमला बेहद लापरवाही बरत रहा है। अंदाजा पोषण पुनर्वास केन्द्र में प्राय: खाली पड़े रहने वाले पलंगों को देखकर लगाया जा सकता है। आलम यह है कि पिछले एक साल में नौ महीने ऐसे बीते, जिनमें एनआरसी की क्षमता के मुताबिक बच्चे उपचार के लिए नहीं आए।

जौरा तहसील मुख्यालय पर कुपोषित बच्चों के उपचार के लिए 10 पलंग क्षमता का पोषण पुनर्वास केन्द्र संचालित है। यहां एक माह में कुपोषित बच्चों के दो बैच भर्ती रखे जाते हैं। इनमें कुपोषित बच्चों को भर्ती कराने की जिम्मेदारी महिला एवं बाल विकास विभाग के मैदानी अमले पर है। सिस्टम यह है कि मैदानी अमला ग्रामीण क्षेत्रों में कुपोषित बच्चों को चिह्नित करेगा और फिर उनके माता-पिता को प्रेरित कर, उन्हें उपचार के लिए पोषण पुनर्वास केन्द्र में भर्ती कराएगा। लेकिन यह सिस्टम ध्वस्त पड़ा है। यही वजह है कि पोषण पुनर्वास केन्द्र में क्षमता के मुताबिक बच्चे नहीं पहुंच रहे हैं। अधिकृत रिकॉर्ड के मुताबिक पिछले एक साल के भीतर एनआरसी में कुल 154 कुपोषित बच्चों को भर्ती कराया गया, जबकि एनआरसी की क्षमता के हिसाब से 240 या इससे अधिक बच्चों को यहां उपचारित किया जाना चाहिए था। खास बात यह कि कुछ महीनों में तो यहां बच्चों की संख्या दहाई का आंकड़ा भी पार नहीं कर सकी।

इस माह भी पलंग खाली


पोषण पुनर्वास केन्द्र में इस समय भी सभी पलंग खाली पड़े हैं। बुधवार को जब वहां बच्चों की संख्या के बारे में जानकारी ली गई तो पता चला कि मार्च के दूसरे बैच में जो कुपोषित बच्चे आए थे, उन्हें मंगलवार को डिस्चार्ज कर दिया गया। इसके बाद अभी तक किसी कुपोषित बच्चे को यहां भर्ती नहीं कराया गया है। महिला एवं बाल विकास विभाग के अमले द्वारा अभी तक कुपोषित बच्चों को भर्ती कराए जाने संबंधी जानकारी भी नहीं दी गई है।

अधिकारी भी दिखा रहे सुस्ती


कुपोषित बच्चों के उपचार को लेकर महिला एवं बाल विकास विभाग का मैदानी अमला ही नहीं, बल्कि अधिकारी भी सुस्ती का परिचय देते रहे हैं। बताया गया है कि एनआरसी स्टाफ द्वारा समय-समय पर पत्राचार के माध्यम से अधिकारियों को बताया जाता रहा है कि मैदानी अमला कुपोषित बच्चों को उपचार के लिए नहीं भेजा रहा है। खबर तो यह भी है कि एनआरसी स्टाफ अक्सर इस बात की जानकारी उन्हें फोन पर भी देता रहा है। लेकिन अधिकारी भी मैदानी अमले पर मेहरबान हैं, इसलिए इस मामले में सख्ती से पेश नहीं आ रहे हैं।

प्रतिमाह लाखों का खर्च


एनआरसी के संचालन पर प्रतिमाह शासन के लाखों रुपए खर्च हो रहे हैं। बता दें कि कुपोषित बच्चों के परिजन को शासन की ओर से प्रोत्साहन राशि के रूप में कुल 2160 रुपए प्रदान किए जाते हैं। कुपोषित बच्चों को यहां तक लाने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को भी 900 रुपए दिए जाते हैं। इसके अलावा एनआरसी में पदस्थ एक डाइटीशियन, एक एएनएम, दो केयर टेकर, एक कुक व एक स्वीपर के मानदेय पर भी प्रतिमाह मोटी रकम खर्च की जा रही है।

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