इसके लिए दुकानदार तो गुरुवार को ही दोपहर से आना शुरू हो गए हैं। शुक्रवार को हरियाणा, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, गुजरात सहित देश भर से लोग दर्शन और पूजा करने आएंगे। शुक्रवार-शनिवार आधी रात से दर्शन और पूजा-अर्चना शुरू हो जाएगी। मंदिर परिसर को भव्यता प्रदान की जा रही है। फूल बंगला भी सजाया जाएगा। मंदिर परिसर के बाहर से बैरीकेडिंग के माध्यम से कतारबद्ध श्रद्धालु दर्शन के लिए मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचेंगे।
सरसों का तेल, नारियल एवं प्रसाद अर्पण के लिए परिसर में कई जगह प्रतीकात्मक प्रतिमाओं के साथ तेलकुंड रखवाए जाएंगे। 27 सितंबर को रात 8 बजे से संयुक्त कलेक्टर, डिप्टी कलेक्टर व तहसीलदार स्तर के अधिकारी नियंत्रण में सारी व्यवस्थाएं ले लेंगे। शुक्रवार को आधी रात से दर्शन का सिलसिला शुरू हो जाएगा। यह सिलसिला शनिवार को दिन भर और आधी रात तक चलेगा। रविवार को श्रद्धालु रवाना होंगे और शाम तक यहां भंडारे संचालित करने वाले लोग रवाना होते हैं।
शनि मंदिर पर पुराने वस्त्र, जूते त्यागने और मुंडन कराने का महत्व है। जिन लोगों का कष्ट निवारण हो जाता है वे शनि मंदिर की शरण आकर वस्त्र त्यागते हैं, मुंंंडन कराते हैं और सरसों का तेल अर्पित कर पूजा-अर्चना करते हैं।
लंका दहन में हनुमान की मदद करने वाले शनिदेव हैं यहां
श्रीराम और रावण युद्ध के दौरान लंका दहन में हनुमानजी विजय दिलाने वाले शनिदेव ऐंती पर्वत स्थित मंदिर में विराजमान हैं। न्याय के देवता कहे जाने वाले शनिदेव के मंदिर में उनके सामने ही हनुमानजी की भी प्रतिमा स्थापित है। यह दुर्लभ संयोग विश्व के किसी दूसरे मंदिर में नहीं है। शनिदेव और हुनुमानजी आपस में परम मित्र हैं। यही वजह है कि हनुमानजी की शनिवार को सच्चे मन से पूजा पर शनिदेव की कृपा भी मिलती है। ऐंती के शनि मंदिर में हनुमानजी की यह प्रतिमा महाराजा विक्रमादित्य ने स्थापित कराई थी। प्रत्येक शनिवारी अमावस को यहां तीन दिवसीय विशाल मेला भरता है जिसमें लाखों श्रद्धालु न्याय के देवता शनिदेव के दर्शन और पूजा कर कष्ट निवारण की कामना करते हैं। मंदिर के पुजारी बृजभूषण दास ने बताया, विश्व का इकलौता ऐसा मंदिर है जहां शनिदेव की मूल प्रतिमा है। जहां मंदिर में हनुमानजी भी विराजे हैं। शनिवारी अमावस पर सर्वपितृमोक्ष अमावस्या होने से भीड़ अधिक होने की उम्मीद है।
ऐसे आए शनिदेव ऐंती
सीता माता की खोज में गए हनुमानजी को राक्षसों ने बंदी बना लिया और रावण के समक्ष के समक्ष उनकी पूंछ में आग लगा दी। हनुमानजी ने इसी से लंका दहन का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो सके। तब योग साधना से इसका कारण पता किया तो उनके प्रिय सखा शनिदेव लंकाधिपति के पैरों में आसन बने दिखे। तब हनुमान जी ने शनिदेव को अपने बुद्धि चातुर्य से रावण की कैद से मुक्त कराया और तुरंत लंका छोडऩे को कहा। लेकिन शनिदेव ऐसा नहीं कर पाए तब शनिदेव ने हनुमान से कहा कि वर्षों से रावण के पैरों में पड़े रहने से वे दुर्बल हो गए हैं। तुरंत लंका नहीं छोड़ सकते। इस पर हनुमानजी उन्हें पूरे वेग से भारत भूखंड की ओर शनिदेव के आग्रह पर फेंका। तब शनिदेव को भारत की ओर फेंका तो ऐंती पर्वत पर आकर गिरे। यहीं शनिदेव ने अपनी खोई हुई सिद्धियां प्राप्त कीं। बाद में राजा विक्रमादित्य ने यहां शनिदेव का मंदिर बनवाया और प्रतिमा स्थापित कराई। पुरातत्व विभाग इसकी पुष्टि कर चुका है। विक्रमादित्य ने ही शनि प्रतिमा के ठीक सामने हनुमानजी की प्रतिमा स्थापित करवाई।